दिया तो जला सब रात-ढाके की मलमल १९५७
गहराई किसी भी पहले में हो, प्रभावित किए बिना नहीं रहती।
विचारों की हो, ज्ञान की हो या आवाज़ की, हमेशा से जन मानस
को अपने आकर्षण पाश में बंधती आई है।
एक आवाज़ है सी एच आत्मा की । इनकी आवाज़ सहगल की
आवाज़ से मिलती जुलती होने के कारण लुभावनी है। १९५७
की फ़िल्म 'ढाके की मलमल' में ये गीत है। थोड़ा अलग सा
गीत बनाया है नय्यर ने। बोल लिखे हैं मशहूर शायर जां निसार
अख्तर ने। पचास के दशक में इस आवाज़ ने सहगल की आवाज़
की कमी को थोड़ा बहुत कम करने का प्रयास किया। आत्मा के २-३
गीत फ़िल्म नगीना में भी हैं जिसमे संगीत शंकर जयकिशन का है।
गाने के बोल:
दिया तो जला सब रात रे बालम
पर तुम लौट न आए
पर तुम लौट न आए
दिया तो जला सब रात रे बालम
पर तुम लौट न आए
पर तुम लौट न आए
बिखर गई है सेज सुहानी,
रोवत है अलबेली जवानी
बिखर गई है सेज सुहानी,
रोवत है अलबेली जवानी
छलिया रसिया कित जा छुपे हो
छलिया रसिया कित जा छुपे हो
जी हमरा कलपाये
दिया तो जला सब रात रे बालम
भोर भाई प्रीतम नहीं आए
भोर भाई प्रीतम नहीं आए
मन का दीपक बुझता जाए
भोर भाई प्रीतम नहीं आए
मन का दीपक बुझता जाए
छलिया रसिया आन मिलो रे
छलिया रसिया आन मिलो रे
जी हमरा घबराए
छलिया रसिया आन मिलो रे
छलिया रसिया आन मिलो रे
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