नव कल्पना नव रूप - मृगतृष्णा १९७६
हेमा मालिनी अपने अप्रतिम सौंदर्य के चलते काफ़ी चर्चित
अभिनेत्री रही है। इस ज़माने में भी उनका आकर्षण बरकरार
है जिसका सबसे बढ़िया उदहारण फ़िल्म 'बागबान' है जो कि
उनकी पुत्री की हालिया रिलीज़ फिल्मों से ज्यादा चली और
सराही गई। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि हेमा मालिनी
चुप रहती है तो और भी ज्यादा सुन्दर लगती है। उनकी आवाज़
उनके अभिनय कौशल से मेल नहीं खाती।
इधर एक ऐसा ही गाना है जो उनकी सुन्दरता में चार चाँद लगा
रहा है। इसमें कोई गायिका की आवाज़ नहीं है। ये गाना है
शम्भू सेन की एक अमर कृति "नव कल्पना नव रूप " फिल्म
" मृगतृष्णा" का । हेमा मालिनी का नृत्य कौशल और रफ़ी की
आवाज़ की जादूगरी की जुगलबंदी।
राग यमन पर आधारित इस रचना को रूपक ताल में बांधा
गया है। राग यमन का प्रयोग करने वाले जमाल सेन पहले
संगीतकार नहीं हैं। इसके पहले भी कई संगीतकारों ने इस
राग का बहुतायत से प्रयोग किया है । ताल वाद्यों में विशिष्टता
स्पष्ट है इस गीत में। गीत फिल्म के बढ़िया गीतों में से एक है।
गीत के बोल:
अंग प्रतिअंग शुभांग सुहावे
नैन अधर कटि नृत्य दिखावे
नव कल्पना नव रूप से
रचना रची जब नार की
सत्यम शिवम् सुन्दरम से
शोभा बढ़ी संसार की
नव कल्पना
कला की दासी कामिनी
सोलह कला परिपूर्ण है
कला की दासी कामिनी
सोलह कला परिपूर्ण है
विश्व में विषकन्या के
ये नाम से प्रसिद्ध है
नाम से प्रसिद्ध है
भाव भाव अनुभाव से
सेवा करे भगवान् की
नव कल्पना
चन्द्रमा सो मुख सलोनो
श्याम वर्णा केश है
चन्द्रमा सो मुख सलोनो
श्याम वर्णा केश है
नैनों से मृगनयनी है
वाणी मधुर उच्चारती
नैनों से मृगनयनी है
वाणी मधुर उच्चारती
नृत्य गान त्रिपुधान पूजा
इनका धरम है आरती
नव कल्पना
नि रे ग, ग रे ग नि रे प् म ग
सा नि प् म ग रे, म ग रे सा
देवलोक की देवदासी
सुन्दर रूप लुभावनी
देवलोक की देवदासी
सुन्दर रूप लुभावनी
पैंजन कंचुकी करधनी
सोलह सिंगार सुहावनी
सोलह सिंगार सुहावनी
शंख डमरू, झांझ, झालर
नुपुर ध्वनि मन मोहिनी
नव कल्पना नव रूप से
रचना रची जब नार की
नव कल्पना
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Nav Kalpana Nav roop se-Mrigtrishna 1976
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