हो ओ निर्दयी प्रीतम- स्त्री १९६१
प्रीतम और निर्दयी ? ऐसा कैसे हुआ ? वी. शांताराम की फ़िल्म में सब
कुछ संभव है। इस वाक्य का ग़लत अर्थ निकलने वाले बहुत निकल
आयेंगे क्यूंकि इसमें तारीफ़ भी है और कटाक्ष की संभावना भी छुपी है।
वी. शांताराम की फ़िल्में अपने मधुर संगीत और कुछ अजीब-ओ-गरीब
भाव भंगिमाओं के लिए जानी जाती हैं। इसमे अजीब सी भाव भंगिमाएं
नायिका की ही हुआ करती थी। फिलहाल ये गीत सुनिए फ़िल्म स्त्री से,
जिसको लता मंगेशकर ने गाया है और इसकी धुन बनाई है सी रामचंद्र ने ।
शुद्ध गीत है ये और इसके रचयिता हैं भरत व्यास। फ़िल्म वर्जन में कुछ
संगीत के टुकड़े ज्यादा हैं जो आपको इसके एल पी पर नहीं मिलेंगे। इस
गीत में अभिनेत्री मुमताज़ को पहचानिए । ये गीत परदे पर गा रही हैं
संध्या । क्लिष्ट भाषा से परिपूर्ण गीत आपको कम मिलेंगे फिल्मों में।
पंडित भारत व्यास और कवि प्रदीप ने हिंदी गीतों में भाषा को उच्च स्थान पर
बिठाये रखने के सराहनीय प्रयास किये। दूसरे गीतकारों के लिए मानदंड
स्थापित करने जैसा कार्य है ये।
गाने के बोल:
ये क्या तुम सब देख रही हो
अच्छा, ये ले
निर्दयी, पर निर्दयी कैसे लिखूं
अरे दोनों ही लिख डाल निर्दयी प्रीतम
सच
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
प्रणय जगा के, ह्रदय चुरा के
चुप हुए क्यूँ तुम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
ये चंदा शीतल कहलाता
फ़िर क्यूँ मेरे अंग जलाता
फूल सा कोमल बाण मदन का
शूल बन के तन में चुभ जाता
फूल सा कोमल बाण मदन का
शूल बन के तन में चुभ जाता
तुम निष्ठुर के विरह ताप में
आग बनी पूनम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
हो ओ , निर्दयी प्रीतम
तुम मधुबन के भ्रमर सयाने
तुम मधुबन के भ्रमर सयाने
बन की कली तेरा ह्रदय न जाने
गुंजन में क्या, मन में क्या था
प्रीत या छल था क्या पहचाने
गुंजन में क्या, मन में क्या था
प्रीत या छल था क्या पहचाने
चित के चोर कठोर ह्रदय से
क्यों मिले थे हम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
प्रणय जगाती, ह्रदय चुराती
चुप हुए क्यूँ तुम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
हो ओ, निर्दयी प्रीतम
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