Feb 20, 2010

आह को चाहिए एक-मिर्ज़ा ग़ालिब १९५४

मिर्ज़ा ग़ालिब जो लिख गए हैं वो क्या है उनके भक्तों से पूछिए।
ये बात तो तय है कि किसी नए नवेले संगीत प्रेमी को भी आप
बिना जानकारी दिए कि ये पंक्तियाँ किसने लिखीं हैं, सुनवा दीजिये
एक बार, वो अवश्य ही पूछेगा की इन पंक्तियों में कुछ अलग सी
बात है। " आह को चाहिए" सबने अलग अलग अंदाज़ में गाया है।
आज आपके लिए सुरैया के गाये गीत के अलावा जगजीत सिंह,
बरकत अली खान और गुलाम अली के गाये हुए वर्ज़न भी सुनवाते हैं।
सबसे बाद में आपको मिलेगा ग़ज़ल गायिका की महारानी बेगम अख्तर
की आवाज़ में यही ग़ज़ल।



जगजीत सिंह का गाया हुआ "आह को चाहिए"



बरकत अली खान का गाया हुआ "आह को चाहिए"



गुलाम अली का का गाया हुआ "आह को चाहिए"



बेगम अख्तर का का गाया हुआ "आह को चाहिए"



गीत के बोल:


आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरे ज़ुल्फ़ के सर होने तक

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तक
खून-ए-जिगर होने तक
खून-ए-जिगर होने तक

हम ने माना के तगाफुल न करोगे लेकिन
हम ने माना के तगाफुल न करोगे लेकिन
खाक हो जाएंगे हम तुम को खबर होने तक
खाक हो जाएंगे हम तुम को खबर होने तक
तुम को खबर होने तक
तुम को खबर होने तक

गम-ऐ-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
गम-ऐ-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
उम्र असर होने तक
उम्र असर होने तक

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