दिल लूटने वाले जादूगर-मदारी १९५९
सूरत, गुजरात में जन्मे मिस्त्री ने कई पौराणिक एवम ऐतिहासिक
फिल्मों का निर्देशन किया है। उन्होंने कल्याण जी वीर जी शाह को
सर्वप्रथम फिल्म सम्राट चन्द्रगुप्त(१९५८) में अवसर दिया जिसका एक
गीत बहुत लोकप्रिय रहा-"चाहे पास हो चाहे दूर हो" । ये एक युगल गीत
था लता और रफ़ी की आवाज़ में। उन्होंने दूसरे संगीतकारों की सेवाएँ
भी समय समय पर लीं। १९६३ में उनकी तीन फिल्मों में अलग अलग
संगीतकार थे-पारसमणि (लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ), सुनहरी नागिन
(कल्याणजी आनंदजी ) , कण कण में भगवन (पंडित शिवराम ) ।
दर्शक और श्रोता कल्याणजी भाई की प्रतिभा से फिल्म सम्राट चन्द्रगुप्त
से ही परिचित हो गए थे। फिल्म मदारी के अलावा जो फिल्म कल्याणजी
आनंदजी के संगीत से सजी १९५९ में आई, वो थी-बेदर्द ज़माना क्या जाने।
इसके एक गीत "क़ैद में है बुलबुल" ने तहलका मचा दिया।
फिल्म मदारी का ये गीत अपनी बीन की आवाज़ के लिए ज्यादा सुना जाता
है जो इसका आकर्षण भी है। ऑडियो गीत में से एक अंतरा गायब है ।
गाने के बोल:
दिल लूटने वाले जादूगर
अब मैंने तुझे पहचाना है
नज़रें तो उठा के देख ज़रा
तेरे सामने ये दीवाना है
दिल लूटने वाले जादूगर
अब मैंने तुझे पहचाना है
नज़रें तो उठा के देख ज़रा
तेरे सामने ये दीवाना है
ये चाँद सितारे देख न लें
मेरे प्यार के नाज़ुक बंधन को
ये चाँद सितारे देख न लें
मेरे प्यार के नाज़ुक बंधन को
आँखों में छुपाकर रख लूँगा
इस फूल से कोमल तन मन को
धीरे से,
धीरे से कहो ये बात पिया
जग अपना नहीं बेगाना है
नज़रें तो उठा के देख ज़रा
तेरे सामने ये दीवाना है
अरमान था तुझको देखूं मैं
सावन की नशीली रातों में
अरमान था तुझको देखूं मैं
सावन की नशीली रातों में
खो जाएँ पिया हम तुम दोनों
इन प्यार की मीठी बातों में
तू सामने,
तू सामने है तो सब कुछ है
वरना ये चमन वीराना है
दिल लूटने वाले जादूगर
अब मैंने तुझे पहचाना है
मैं प्यार की माला गून्थुंगी
आशाओं की कलियाँ चुन चुन के
मैं प्यार की माला गून्थुंगी
आशाओं की कलियाँ चुन चुन के
रूठे न कहीं मुझसे दुनिया
ये बात तुम्हारी सुन सुन के
अरमान भरे,
अरमान भरे दिलवालों का
दुनिया ने कहा कब माना है
नज़रें तो उठा के देख ज़रा
तेरे सामने ये दीवाना है
दिल लूटने वाले जादूगर
अब मैंने तुझे पहचाना है
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Dil lootne waale jadugar-Madari 1959
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