और कुछ देर ठहर-आखरी ख़त १९६६
राजेश खन्ना के खाते में शायद सबसे ज्यादा रोमांटिक गीत आये हैं।
वैसे तो सभी नायकों के हिस्से में आये होंगे मगर जिन गीतों को सबसे
ज्यादा सुना जाता है उनकी बात हो रही है। शुरूआती दौर में उनके खाते में
रफ़ी के गाये काफी गीत आये, उनमें से जो उल्लेखनीय गीत है वो हम
पहले सुनेंगे इस ब्लॉग पर। ये गीत कैफ़ी आज़मी का लिखा और ख़य्याम
द्वारा संगीतबद्ध गीत है सन १९६६ की फिल्म आखरी ख़त से।
गीत के बोल:
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर
रात बाक़ी है अभी रात में रस बाक़ी है
पा के तुझको तुझे पाने की हवस बाक़ी है
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर
जिस्म का रंग फ़ज़ा में जो बिखर जायेगा
मेहरबान हुस्न तेरा और निखर जायेगा
लाख ज़ालिम है ज़माना मगर इतना भी नहीं
तू जो बाहों में रहे वक़्त ठहर जायेगा
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर
ज़िंदगी अब इन्हीं क़दमों पे लुटा दूँ तो सही
ज़िंदगी अब इन्हीं क़दमों पे लुटा दूँ तो सही
ऐ हसीन बुत मैं ख़ुदा तुझको बना दूँ तो सही
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा
और कुछ देर ठहर
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Aur kuchh der thehar-Akhiri khat 1966
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