दुःख सुख की हर एक माला-कुदरत १९८१
कुछ काम अधूरे ही रह जाते हैं। फिल्म संगीत क्षेत्र में भी ऐसे कुछ
वाकये हैं। रफ़ी का गाया ये गीत केवल फिल्म के साउंड ट्रैक पर ही
उपलब्ध है। फिल्म के एल पी रेकोर्ड पर आपको ये गीत नए गायक
चंद्रशेखर गाडगीळ की आवाज़ में मिलेगा। रफ़ी के कुछ अंतिम गीतों
में से एक है और गीत में कुछ अजीब सी कशिश है और जब भी इसको
सुनो, ये गीत मस्तिष्क में उथल पुथल मचा देता है। मजरूह के लिखे
गीत की धुन तैयार की है राहुल देव बर्मन ने और इस फिल्म का शीर्षक
गीत चार हिस्सों में पार्श्व में बजता है।
गीत के बोल:
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
हाथों की लकीरों में
ये जागती है सोती है
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
यादों की शमा ये बने
भूले नज़रों में कभी
आने वाले कल पे हँसे
खिलती बहारों में कभी
एक हाथ में अँधियारा
एक हाथ में ज्योति है
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
आहों के ज़नाजे दिल में
आँखों में चिताएं गम की
उड़ गई आस दिल से
चली वो हवाएं गम की
तूफ़ान के सीने में ये
चैन से सोती है
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
खुद को छुपाने वालों का
पल पल ये पीछा ये करे
सजा देती है ये ऐसी
तन मन छलनी करे
फिर दिल का हर एक घाव
अश्कों से ये धोती है
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
हाथों की लकीरों में
ये जागती है सोती है
दुःख सुख की हर एक माला
कुदरत ही पिरोती है
...........................
Dukh sukh ki har ek maala-Kudrat 1981
0 comments:
Post a Comment