बोतल से इक बात चली है-घर १९७८
गाने के लिए किसी सिचुएशन का होना ज़रूरी नहीं है किसी फिल्म में.
कभी कभी जबरन भी गीत ठूंसे जाते हैं किसी व्यक्ति विशेष की फ़रमाइश
पर. एक ऐसा ही गीत सुनवाते हैं आपको फिल्म घर से.
गीत फिल्माया गया है विनोद महरा और रेखा पर. गुलज़ार के लिखे बोलों
को सुरों में ढाला है आर डी बर्मन ने. आशा और रफ़ी इस गीत के गायक
हैं. जैसा की गुलज़ार के अधिकांश गीतों में होता है चाँद की विशेष सेवा
इस गीत में भी की गयी है.
कोका कोला की पुरानी बोतल कैसी दिखती थी ये कोका कोला प्रेमी जान
पाएंगे इस गीत से.
गीत के बोल:
बोतल से इक बात चली है
काग उड़ा के रात चली है
बोतल से इक बात चली है
काग उड़ा के रात चली है ,हो
तु रु रु तु, तु रु रु तु ,तु रु तु तु
तु रु रु तु, तु रु रु तु, तु रु तु तु
हो, बोतल से इक बात चली है
तू रु रु तू
काग उड़ा के रात चली है
आज की मय बहुत मीठी है
आज तो आँख मिला के पीना
चांद की मिसरी घुल जायेगी
चाँद से होंठ लगा के पीना
हो
तु रु रु तु तु रु रु तु तु रु तु तु
तु रु रु तु तु रु रु तु तु रु तु तु
हो, बोतल से इक बात चली है
काग उड़ा के रात चली है
हो, बोतल से इक बात चली है
काग उड़ा के रात चली है
वादों वाली रात आयी है
आज की रात इनकार ना करना
अपने दिन और रात ना पूछो
तुमसे जीना तुमपे मरना
तु रु रु तु तु रु रु तु तु रु तु तु
तु रु रु तु तु रु रु तु तु रु तु तु
हो, बोतल से इक बात चली है
तू रु रु तू
काग उड़ा के रात चली है
बोतल से इक बात चली है
काग उड़ा के रात चली है
ल ल ल ल ल ल ल ल
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Botal se ek baat chali hai-Ghar 1978
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