Jul 17, 2011

उल्फत में ज़माने की हर रस्म को-कॉल गर्ल १९७४

सन १९७४ की फिल्म है कॉल गर्ल. फिल्म में विक्रम के साथ ज़ाहिरा
प्रमुख कलाकार हैं. फिल्म चली हो या न हो, प्रस्तुत गीत किशोर कुमार
के गाये सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक है. जितने सुन्दर बोल नक्श
लायलपुरी के हैं उतनी ही बदिया धुन संगीतकार सपन जगमोहन ने बनाई
है. सपन जगमोहन के संगीतबद्ध ३ अच्छे गीत पहले आपको सुनवा चुके
हैं इस ब्लॉग पर. ये गीत समय के बंधन से मुक्त गीत है जिसे जब सुनो
बढ़िया ही लगता है.

आइये आनंद उठाया जाए किशोर कुमार के इस गीत का जिसे परदे पर विक्रम
गा रहे हैं. कुछ संगीत प्रेमियों की गीत के साथ कल्पननाये उगाने की आदत
होती है जैसे -फलां गीत राजेश खन्ना पर फिल्माया जाना था, फलां गीत
धर्मेन्द्र पर फिल्माया जाना था. एक कोशिश मैं भी कर लेता हूँ आज.

मेरी राय में विक्रम अच्छे लग रहे हैं इस गीत को गाते हुए, अगर वाकई किसी
और कलाकार की कल्पना आप करना चाहें की किसके ऊपर ये जंचता तो इस
मामले में मेरी पसंद होगी-देव आनंद. जिस तरीके की गायकी इस गीत में
है वो देव आनंद के ऊपर फिल्माए गए गीतों से मेल खाती है.

गीत की शुरुआत में जो माहिला कलाकार परदे पर विक्रम से बातें करते दिखाई
देती हैं उनका नाम है-उर्मिला भट्ट.




गीत के बोल:


उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ

क़दमों को ना रोकेगी, ज़ंजीर रिवाज़ों की
हम तोड़ के निकलेंगे, दीवार समाजों की
दूरी पे सही मंज़िल, दूरी से ना घबराओ

उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ

मैं अपनी बहारों को, रंगीन बना लूँगा
सौ बार तुम्हें अपनी, पलकों पे बिठा लूँगा
शबनम की तरह मेरे, गुलशन में बिखर जाओ

उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ

आ जाओ के जीने के, हालात बदल डालें
हम तुम ज़माने के, दिन रात बदल डालें
तुम मेरी वफ़ाओं की, एक बार क़सम खाओ

उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
फिर साथ मेरे आओ, ओ ओ ओ ओ
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
...................................
Ulfat mein zamane ki-Call Girl 1974

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