काहे बोले पपीहा-सावन आया रे १९४९
जिस दिन बारिश होती है, सावन के या बारिश के उल्लेख वाले
गीत और फ़िल्में याद आ जाती हैं। आज कुछ इलाकों में बारिश
हुयी अतः एक फिल्म का नाम याद आया –सावन आया रे। वैसे
महीना तो भादो का चल रहा है मगर हमने ये गीत सावन के
महीने में नहीं सुना इसलिए अब सुन लेते हैं।
बारिश के मौसम में चील-कौवे, कोयल-पपीहे, छोरे-छोरी सभी का
कलरव/शोरगुल आप सुन सकते हैं। मौसम है ही ऐसा जो प्रकृति
के सभी तत्वों को आनंदित करता है। पत्थरों की ज़ुबान होती तो
वे भी बतलाते कि बारिश में भीगने में कितना आनंद आता है।
अमीरबाई कर्नाटकी के गाये गीत को परदे पर फिल्माया गया है
रमला देवी पर जो किशोर साहू से मुखातिब हैं। राममूर्ति चतुर्वेदी
इस गीत के लेखक हैं और इसे संगीतबद्ध किया है उस ज़माने के
नामचीन संगीतकार ‘खेमू जी’ उर्फ खेमचंद प्रकाश ने। गीत में
अगर आपको प्यानो की आवाज़ न आये तो शिकायत न कीजियेगा
क्यूंकि फ़िल्मी साज़ कैसी भी आवाज़ निकल सकते हैं। हो सकता है
प्यानो नायिका के नृत्य के लिए रिमोट कंट्रोल का काम कर रहा हो।
गीत के बोल :
पहने पीली रंग साडी
लाल लागी हो किनारी
मैं तो गवन चली हूँ
मैं तो गवन चली हूँ
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
मैं तो गवन चली हूँ
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
नैना मोरे कजरारे
बेली गजरा संवारे
नैना मोरे कजरारे
बेली गजरा संवारे
लाली होंठों की निराली
लाली होंठों की निराली
रस घोले पपीहा, घोले पपीहा
काहे बोले पपीहा, बोले पपीहा
मैं तो गवन चली हूँ
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
माथे की बिंदिया चम् चम् चमके
माथे की बिंदिया चम् चम् चमके
पायल मोरी छम छम छमके
पायल मोरी छम छम छमके
मोरे नैना मतवारे करे छुप के इशारे
करे छुप के इशारे
वहां झूलूंगी
वहां झूलूंगी दुलार के हिंडोले पपीहा
बोले पपीहा
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
मैं तो गवन चली हूँ
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
मन की उमंगें संवारे चली मैं
मन की उमंगें संवारे चली मैं
दुल्हन बने पी के द्वारे चली मैं
दुल्हन बने पी के द्वारे चली मैं
उनमें खो जाऊँगी उनकी हो जाऊँगी
उनमें खो जाऊँगी उनकी हो जाऊँगी
पिया रंग और उमंग भरा डोले पपीहा
डोले पपीहा
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
मैं तो गवन चली हूँ
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
काहे बोले पपीहा बोले पपीहा
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Main to gawan chali-Sawan aaya re 1949
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