रात गई फिर दिन आता है-बूट पॉलिश १९५४
कथनी और करनी में अंतर मिट जाता है तभी व्यक्ति महात्मा बनता है।
आज बापू की पुण्यतिथि है और उनकी याद में एक गीत प्रस्तुत है फिल्म
बूट पॉलिश से। प्रेरणादायक गीत है ये और मानो ये सन्देश दे रहा हो कि
राजनीति के संक्रमण काल के बाद सुहानी भोर ज़रूर आएगी एक बार फिर।
आम आदमी का जीवन क्या जीवन है इस गीत के माध्यम से ही जान लीजिये।
बच्चों पर बनी ये मर्मस्पर्शी फिल्म मधुर गीतों का खज़ाना है। गीतकार शैलेन्द्र
हसरत और 'सरस्वती कुमार दीपक' ने एक एक गीत में प्राण फूँक दिए हों
मानो। फिल्म 'तीसरी कसम' के एक गीत में भी बुढ़ापे और जवानी की गाथा है
जो शैलेन्द्र का लिखा हुआ है । काल के पहिये पर नीरज साहब फिल्म 'चंदा
और बिजली' के गीत में कह चुके हैं। तीनों ही गीतों का संगीत तैयार किया है
शंकर जयकिशन ने। गीत में प्रमुख कलाकार हैं-बेबी नाज़ और डेविड।
प्रस्तुत गीत के लेखक हैं सरस्वती कुमार "दीपक" । गायक मन्ना डे की आवाज़
को तो आप पहचानते ही होंगे।
गीत के बोल:
रात गई
हो हो हो हो हो
रात गई फिर दिन आता है
इसी तरह आते जाते ही
ये सारा जीवन जाता है
हो ओ रात गई, रात गई
रात गई फिर दिन आता है
इसी तरह आते जाते ही
ये सारा जीवन जाता है
हो ओ रात गई, रात गई
कितना बड़ा सफ़र इस दुनिया का
एक रोता एक मुस्काता है
एक रोता एक मुस्काता है
हा आ आ आ आ आ आ आ
कदम कदम रखता राही
कितनी दूर चला जाता है
एक एक तिनके तिनके से
एक एक तिनके तिनके से
पंछी का घर बन जाता है
हो ओ रात गई, रात गई
कभी अँधेरा कभी उजाला
कभी अँधेरा कभी उजाला
फूल खिला फिर मुरझाता है
खेला बचपन हंसी जवानी
खेला बचपन हंसी जवानी
मगर बुढ़ापा तडपाता है
मगर बुढ़ापा तडपाता है
खेला बचपन हंसी जवानी
मगर बुढ़ापा तडपाता है
सुख दुःख का पहिया चलता है
वही नसीबा कहलाता है
हो ओ रात गई, रात गई
रात गई फिर दिन आता है
इसी तरह आते जाते ही
ये सारा जीवन जाता है
हो ओ रात गई, रात गई
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Raat gayi fir din aata hai-Boot Polish
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