मुझे तुम चुपके चुपके जब-कुछ न कहो २००३
सुनाई देते हैं जीवन में. वही हाल गीतों का भी तो है.
“अच्छा” शब्द सुनने में फील-गुड का अहसास जैसा है.
शब्दों में बड़ी ताकत होती है और इनका समुचित प्रयोग
भावनाओं को उभारने या खत्म करने की क्षमता रखता है.
ये एक गीत है जिसमें चुपके-चुपके देखना अच्छा लग
रहा है. आगे और भी तरीके बताये हैं गीतकार ने अच्छे
लगने के. गीत है २००३ की फिल्म कुछ न कहो से, और
ठंडी आहें गीत में पिपरमेंट की गोली खा कर भरी गयी हैं
या ठंडा पानी पी के, इसके लिए आपको गीत देखना पड़ेगा.
गायक कलाकार हैं उदित नारायण और कविता कृष्णमूर्ति.
संगीत है शंकर एहसान लॉय का जो तीन संगीतकारों की
तिकड़ी है.
गीत के बोल:
मुझे तुम चुपके चुपके जब ऐसे देखती हो
अच्छी लगती हो
कभी ज़ुल्फ़ों से, कभी आंचल से जब खेलती हो
अच्छी लगती हो
मुझे देख के जब तुम या ठंडी आहें भरते हो
अच्छे लगते हो
मुझको जब लगता है तुम मुझ पर ही मरते हो
अच्छे लगते हो
तुममें ऐ मेहरबान, सारी है खूबियाँ
भोलापन सादगी, दिलकशी ताज़गी
दिलकशी तुमसे है, ताज़गी तुमसे है
तुम हुए हमनशी, हो गयी मैं हसीं
रंग तुमसे मिले हैं सारे
तारीफ़ जो सुनके तुम ऐसे शरमा जाती हो
अच्छी लगती हो
कभी हंस देती हो और कभी इतरा जाती हो
अच्छी लगती हो
मुझे देख के जब तुम या ठंडी आहें भरते हो
अच्छे लगते हो
खोये से तुम हो क्यों, सोच में गुम हो क्यों
बात जो दिल में हो, कह भी दो, कह भी दो
सोचता हूँ के मैं, क्या पुकारूं तुम्हें
दिलनशीं नाज़नीन, माहरू महज़बीन
ये सब है नाम तुम्हारे
मेरे इतने सारे नाम है, जब तुम ये कहते हो
अच्छे लगते हो
मेरे प्यार में जब तुम खोये खोये से रहते हो
अच्छे लगते हो
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Mujjhe tum chupke chupke-Kuchh na kaho 2003
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