कैसी चली है अब के हवा-गज़ल गुलाम अली
प्रतीकों का काफी उपयोग होता है. आपके पास ढेर सारे अर्थ
निकालने का सामान होता है.
हवा चलने से ट्रेंड को भी समझा जा सकता है किसी चीज़ के.
‘कैसी चली हवा’ गज़ल से मुझे तेज गति से बढती वाहनों की
संख्या और ट्रैफिक के बढते घनत्व की याद आती है. अनाजों
का घनत्व तो कम होता जा रहा है, प्रदूषण का घनत्व बढ़ता
जा रहा है. उसके अलावा मानसिक प्रदूषण भी बढ़ रहा है तेज
रफ़्तार से. मोबाइल और वाहनों में भावनाएं और मानवीय गुण
कहीं गम होते जा रहे हैं.
आइये सुनते हैं गुलाम अली की गयी एक गज़ल जिसमें कुछ
ऐसी ही बातें कही गई हैं. ये आज के समय पर प्रासंगिक है.
गज़ल के बोल:
कैसी चली है अब के हवा, तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
क्या जाने क्या हुआ कि परेशान हो गए
इक लहज़ा रुक गयी थी सबा तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
कुछ दुश्मनी का ढब है न अब दोस्ती के तौर
दोनों का एक रंग हुआ तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
शायद उन्हें पता था कि 'ख़ातिर' है अजनबी
लोगों ने उसको लूट लिया तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
कैसी चली है अब के हवा, तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा, तेरे शहर में
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Kaisi chali ab ke hawa-Ghulam Ali Gazal
1 comments:
वाह भाई वाह
कोरोना वाइरस के कारण हम घर बैठे गाने ही सुन रहे हैं.
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