जन्नत है देखनी तो-शतरंज के मोहरे १९७४
रंगीन दौर में भी बने. मुकेश के पिछले गीत से एक गीत
याद आया शतरंज के मोहरे से जो सन १९७४ की फिल्म है.
शिबू मित्रा निर्देशित इस फिल्म का निर्माण साकेत फिल्म्स
नमक संस्था ने किया. शिबू मित्रा की १९७३ की फिल्म
बिंदिया और बन्दूक का नाम आपने अवश्य सुना होगा जिसका
निर्माण जोगिन्दर लूथरा ने लिया था. शिबू मित्रा ७० के दशक
में उतना सक्रीय नहीं रहे जितना बाद के दशकों में. गोविंदा
अभिनीत फिल्म इलज़ाम(१९८६) आपको अवश्य याद होगी.
फिल्म शतरंज के मोहरे में पुराने ज़माने के प्रदीप कुमार और
दुलारी भी हैं. सत्येन कप्पू भी फिल्म में हैं जिनका पूरा नाम
सत्येन्द्र कपूर है. गीत में आप युवा नीतू सिंह को देख पाएंगे.
राकेश पांडे को आप पहचान जायेंगे क्यूंकि आप पुरानी फिल्मों
के शौक़ीन हैं, हैं ना?
आश्चर्य होगा आपको कि ये गीत प्रसिद्ध कवि नीरज की कलम
से निकला है. गीत श्रवणीय है और संगीतकार रवींद्र जैन ने
अलग सी धुन बनायीं है इसकी जो उनकी संगीत परंपरा का
हिस्सा न हो के कल्याणजी आनंदजी का मसाला सी लगती
है. एक अच्छा इंस्पिरेशनल सोंग है ये.
गीत के बोल:
जन्नत है देखनी तो किसी दिल में आशियाँ बना
जन्नत है देखनी तो किसी दिल में आशियाँ बना
फूलों की एक ज़मीन बना गीतों का आसमान बना
प्यार की अंजुमन में आ बन जा अफताब
है जो सुरूर इश्क तो पानी भी है शराब
पानी भी है शराब
किस्मत ना जो मिटा सके ऐसा कोई निशाँ बना
जन्नत है देखनी तो किसी दिल में आशियाँ बना
खुशबू-ए-गुल तो एक है रंगत जुदा जुदा
फर्क-ए-नज़र मिटा दे तो बंदा ही है खुदा
बन्दा ही है खुदा
कोई न गैर हो जहाँ ऐसा भी एक जहाँ बना
जन्नत है देखनी तो किसी दिल में आशियाँ बना
वक्त की सूनी राह में हस्ती है एक मुकाम
और ये मुकाम कब तलक जब तक छलके जाम
जब तक छलके जाम
दुनिया का साथ छोड़ के ख्वाबों का तार यहाँ बना
जन्नत है देखनी तो किसी दिल में आशियाँ बना
फूलों की एक ज़मीन बना गीतों का आसमान बना
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Jannat hai dekhni to-Shatranj ke mohre 1974
Artists-Rakesh Pandey, Neetu Singh
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