मै राही भटकने वाला हूँ-बादल १९५१
फिल्म बादल का ये गीत मुकेश का गाया हुआ है और बहुत घिसा
हुआ गीत है. घिसा हुआ गीत से अर्थ बहुत बजा हुआ है एक ज़माने
में.
हसरत जयपुरी के लिखे बोल हैं और शंकर जयकिशन की कैची धुन
फिल बादल के लगभग सभी गीत कर्णप्रिय हैं. अब ये कर्ण कर्ण पर
निर्भर करता है कि किस कर्ण को क्या प्रिय है.
गीत प्रेमनाथ और मधुबाला पर फिल्माया गया है और देखने में
भी सुखदायी है. श्रेणी बनाने के शौकीनों के लिए ये घोडा-सोंग है.
गीत के बोल:
मै राही भटकने वाला हूँ
कोई क्या जाने मतवाला हूँ
यह मस्त घटा मेरे चादर है
यह धरती मेरा बिस्तर है
मै रात में दिन का उजाला हूँ
कोई क्या जाने मतवाला हूँ
यह बिजली रात दिखाती है
मंजिल पे मुझे पहुंचाती है
मै तुफानो का पाला हूँ
कोई क्या जाने मतवाला हूँ
मै मचलू तोह इक आग भी हूँ
मै झुमु तोह इक राग भी हूँ
दुनिया से दूर निराला हूँ
कोई क्या जाने मतवाला हूँ
मै राही भटकने वाला हूँ
कोई क्या जाने मतवाला हूँ
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Main rahi bhatakne waala hoon-Badal 1951
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