सपने में मिलती है-सत्या १९९८
व्याख्या कुछ यूँ की जाने लगी-शोले के पहले और शोले के बाद.
हर ३०-४० साल में एक ऐसी फ़िल्म ज़रूर आती है जो सिनेमा
की दिशा या दर्शकों का टेस्ट बदलती है. सत्या को भी हम एक
ऐसी फिल्म मान सकते हैं कम से कम उसने उस दशक का ट्रेंड
बदला या संशोधित किया. फिल्म का नाम अत्यधिक हिंसा वाली
फिल्मों में शुमार है.
फिल्म ने मनोज बाजपेयी को अच्छी पहचान दिलाई. भीखू म्हात्रे
नाम का जो किरदार है उनका फिल्म में उसकी काफी प्रशंसा की
जनता और समीक्षक जनता ने.
गीत के बोल:
सपने में मिलती है
ओ कुड़ी मेरी सपने में मिलती है
सारा दिन घुँघटे में बंद गुड़िया सी
अँखियों में घुलती है
सपने में मिलता है
ओ मुण्डा मेरा सपने में मिलता है
सारा दिन सड़कों पे खाली रिक्शे सा
पीछे-पीछे चलता है
कोरी है करारी है
भून के उतारी है
कभी-कभी मिलती है
हो कुड़ी मेरी सपने में मिलती है
ऊँचा लम्बा कद है
चौड़ा भी तो हद है
दूर से दिखता है
ओ मुण्डा मेरा
अरे देखने में तगड़ा है
जंगल से पकड़ा है
सींग दिखाता है
सपने में मिलता है
ओ मुण्डा मेरा सपने में मिलता है
पाजी है शरीर है
घूमती लकीर है
चकरा के चलती है
सपने में मिलती है
ओ कुड़ी मेरी सपने में मिलती है
अरे कच्चे पक्के बेरों से
चोरी के शेरों से
दिल बहलाता है
रे मुण्डा मेरा सपने में मिलता है
हाय गोरा चिट्टा रंग है
चाँद का पलंग है
गोरा चिट्टा रंग है
चाँदनी में धुलती है
हो कुड़ी मेरी सपने में मिलती है
दूध का उबाल है
हँसी तो कमाल है
मोतियों में तुलती है
सपने में मिलती है
ओ कुड़ी मेरी सपने में मिलती है
नीम शरीफ़ों के
एंवें लतीफ़ों के क़िस्से सुनाता है
सपने में मिलता है
ओ मुण्डा मेरा सपने में मिलता है
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Sapne mein milti hai-Satya 1998
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