Jun 1, 2016

इस जीवन की फुलवारी में-अधिकार १९३७

न्यू थिएटर्स बैनर तले बनी सन १९३७ की फिल्म में जमुना
पहाड़ी सान्याल, पंकज मालिक, जगदीश सेठी और मेनका जैसे
कलाकार थे. इनमें से शायद आप पंकज मलिक और पहाड़ी
सान्याल के नामों को पहचानते होंगे. बाकी के नामों पर प्रकाश
डालने की कोशिश करते हैं अगली किसी पोस्ट में. ये अगली
अगली करते ना जाने कितने अफ़साने अधूरे रह गए इधर.
इस फिल्म का निर्देशक प्रमतेश चंद्र बरुआ उर्फ पी सी बरुआ
ने किया था.

सबसे पहले आपको गीत का विवरण दे दे. इस गीत को पहाड़ी
सान्याल ने गाया है, मुंशी आरजू के बोल हैं और तिमिर बरन
का संगीत.

पुराने गीतों के बोल लिखना आसान काम नहीं है. किसी में
विनाइल की ‘घसर घसर घूं घूं’ साथ में फ्री सुनाई देती है तो
किसी गीत में गायक गायिका शब्द चबाते हुए गाते हैं.



गीत के बोल:

इस जीवन की फुलवारी में सदा मगन रहना
इस जीवन की फुलवारी में सदा मगन रहना
आशा के फूल चुना करना
आशा के फूल चुना करना
काँटा दुःख का चुभे सदा हंसना
सदा मगन रहना
इस जीवन की फुंदवारी में सदा मगन रहना

इस जिंदगी की शाख में
गुल भी हैं हार भी
जिंदगी की शाख में
गुल भी हैं हार भी
आती है इस चमन में फिजा भी बहार भी
आती है इस चमन में पिज़ा भी बहार भी

चंद्र हँसे जब गुल कुम्हलाये
घूंघट फूल कली मुस्काए
चंद्र हँसे जब गुल कुम्हलाये
घूंघट फूल कली मुस्काए
दिन ढल कर जब सोग रचाए
बन के सुहागन आये रैना
सदा मगन रहना
इस जीवन की फुलवारी में सदा मगन रहना

शबनम की तरह किसलिए
ऐ शाम रोती है
चुप रह के रात ढल गयी
चुप रह के रात ढल गयी
अब सुबह होती है
भोली शाम क्यूँ घबराती है
दुःख की रात से भय खाती है
भोली शाम क्यूँ घबराती है
दुःख की रात से भय खिलाती है
दुःख की रात ही दिखलाती है
दुःख की रात ही दिखलाती है
सुख आनंद का सुन्दर सपना
सदा मगन रहना
इस जीवन की फुलवारी में सदा मगन रहना
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Is jeevan ki phulwari mein-Adhikar 1937

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