तेरा नाम लिख दिया-बहारों की मंजिल १९९१
रह जाती है. एक ऐसा ही गीत है रवीन्द्र रावल का लिखा हुआ
फिल्म बहारों की मंजिल से. फिल्म नहीं चली और इसके १-२
गीत बजे उसके अलावा इसका विवरण कभी चर्चा में नहीं आया.
गीत के बोल लाजवाब हैं और शब्द बहुत करीने से जमाए लगते
हैं इसके. इसे उदित नारायण और पूर्णिमा ने गाया है. पूर्णिमा
जिन्हें हम सुषमा श्रेष्ठ के नाम से भी जानते हैं. फिल्म चमकते
दमकते सितारों से रहित है और ये भी एक वजह है इसकी शान
में किसी ने कसीदे नहीं काढे.
आजकल तो एक ट्रेंड बना हुआ है-या तो फिल्म हिट होती है या
फिर ‘क्रिटिकली एक्लेम्ड’ घोषित कर दी जाती है. शायद फ्लॉप
शब्द उन्हीं फिल्मों के लिए सुरक्षित है जिनके साथ कोई नामचीन
निर्देशक या सितारा न जुडा हुआ हो. ये भी एक ट्रेंड है लेखनी का
जिसे आजकल के समीक्षाकार प्रयोग में लाते हैं.
गीत के बोल:
तेरा नाम लिख दिया
साँसों पे धड़कन पे हर आरज़ू पे
हर ख्वाब पे दिलरुबा
तेरा नाम लिख दिया
बिंदिया पे काजल पे लाली पे
लब की आंचल पे मैने पिया
तेरा नाम लिख दिया
जाने तुम थे कहां जाने हम थे कहां
प्यार की ये लगन खींच लाई यहां
हुस्न कैसे रुके प्यार जब दे सदा
कब तलक जिस्म से जान रहती जुदा
फूल कली पत्ते शाखों पे सारे गुलशन पे
हो तेरा नाम लिख दिया
लैला मजनूं बने हीर रांझा बने
दीवाने प्यार में जाने क्या क्या बने
सेहरा में हम चलें बागों में हम मिलें
मौत के बाद भी टूटे न सिलसिले
ज़मीं के ज़र्रे पे आकाश की गर्दन पे
तेरा नाम लिख दिया
इक नई दास्तां हम लिखेंगे सनम
अब के वादा रहा टूटेगी ना कसम
इस जहां के सितम हम सहेंगे नहीं
एक पल भी अलग अब रहेंगे नहीं
अपने लहू से हमने रूह के दामन पे
तेरा नाम लिख दिया
साँसों पे धड़कन पे हर आरज़ू पे
हर ख्वाब पे दिलरुबा
तेरा नाम लिख दिया
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Tera naam likh diya-Baharon ki manzil 1991
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