ग़म उठाने के लिये मैं तो-मेरे हुज़ूर १९६८
रफ़ी के गाये ऊंचे स्केल वाले गीतों में से एक ये सुनने वालों को
काफी हिला देता है ऐसा दर्द भरे गीतों के शौकीनों का मानना है.
गीत एक पश्चाताप वाला गीत है. नायक अपने किये को याद कर
शर्मिंदा हो रहा है गीत में और चीख चीख कर ये ऐलान कर रहा
है कि वो ग़म उठाने के लिए और दर्द सहने के लिए जिए जायेगा.
कभी कभी इतनी देर हो जाती है अपनी गलतियों को समझने में
कि सांप निकल जाता है और आदमी लकीर पीटता रह जाता है.
गीत लिखा है हसरत जयपुरी ने और शंकर जयकिशन ने गीत की
धुन बनाई है
गीत के बोल:
ग़म उठाने के लिये मैं तो जिये जाऊँगा
साँस की लय पे तेरा नाम लिये जाऊँगा
हाय तूने मुझे उल्फ़त के सिवा कुछ न दिया
और मैने तुझे नफ़रत के सिवा कुछ न दिया
तुझसे शरमिंदा हूँ ऐ मेरी वफ़ा की देवी
तेरा मुजरिम हूँ मुसीबत के सिवा कुछ न दिया
ग़म उठाने के लिये मैं तो जिये जाऊँगा
तू ख़यालों में मेरी अब भी चली आती है
अपनी पलकों पे उन अश्कों का जनाज़ा लेकर
तूने नींदें करीं क़ुरबान मेरी राहों में
मैं नशे में रहा औरों का सहारा लेकर
ग़म उठाने के लिये मैं तो जिये जाऊँगा
………………………………………………….
Gam uthane ke liye main to-Mere huzoor 1968
Artist: Jeetendra
0 comments:
Post a Comment