Jul 29, 2016

अपनों को जो ठुकराएगा-जुदाई १९८०

अपनों की अहमियत समझ तब आती है जब कोई उनसे
दूर हो जाता है, वजह जो भी हो. अपने ढूँढना भी इस जहाँ
में आसान काम नहीं है. अक्सर आदमी धोखा खा जाता
है अपनों को पहचानने में.

सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते
मगर कभी कभी शाम होते होते जिंदगी गुज़र जाती है और
मौका ही नहीं मिलता घर लौटने का.

जीवन के विकट ताले विश्वास की कुंजी से खुला करते हैं इसमें
शक के लिए कोई जगह नहीं होती.

रफ़ी का गाया एक दर्द भरा गीत सुनते हैं फिल्म जुदाई से
ये सन १९८० वाली जुदाई है जीतेंद्र, रेखा अभिनीत. गीत लिखा
है आनंद बक्षी ने और धुन बनाई लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने.






गीत के बोल:.

अपनों को जो ठुकराएगा
गैरों की ठोकरें खायेगा
अपनों को जो ठुकराएगा
गैरों की ठोकरें खायेगा
इक पल की गलतफ़हमी के लिए
सारा जीवन पछतायेगा
इक पल की गलतफ़हमी के लिए
सारा जीवन पछतायेगा

अपनों को जो ठुकराएगा
गैरों की ठोकरें खायेगा

तूने समझा है जीत जिसे
वो बन जायेगी हार कभी
तूने समझा है जीत जिसे
वो बन जायेगी हार कभी
ये मान तेरा अभिमान तेरा
तुझपे ही करेगा वार कभी
ये चोट सही नहीं जायेगी
ये दर्द सहा नहीं जायेगा
अपनों को जो ठुकराएगा
गैरों की ठोकरें खायेगा

शादी दो दिन का मेल नहीं
गुड्डे गुडिया का खेल नहीं
ये प्यार है दो इंसानों का
ये इश्क नहीं दीवानों का
इसमें जिद का कुछ काम नहीं
ये जीवन है संग्राम नहीं
भूलेगे तो खो जाओगे
तुम दूर बहुत हो जाओगे
तुम दूर बहुत हो जाओगे

तो क्या हुआ, हम बच्चों के सहारे जियेंगे

बच्चों के साथ गुजर कब तक
ये देंगे साथ मगर कब तक
जब वो भी बड़े हो जायेंगे
तुम सोचोगे ये दूर खड़े
क्या सच है और क्या सपना है
अब दुनिया में क्या अपना है

क्या है अपना अपना क्या है
क्या है अपना

इसलिए ये बंधन मत तोड़ो
अपनी मर्यादा मत छोडो
इसलिए ये बंधन मत तोड़ो
अपनी मर्यादा मत छोडो
आपस में जो टकराओगे
तो टूट के बस रह जाओगे
तो टूट के बस रह जाओगे

देखेगा शक का पिंजरा तो
सुख का पंछी उड़ जायेगा
देखेगा शक का पिंजरा तो
सुख का पंछी उड़ जायेगा
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Apnon ko jo thukrayega-Judaai 1980

Artists: Jeetendra, Rekha

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