है ये दुनिया कौन सी-सैलाब १९५६
में संगीत देने कि शुरुआत की थी. उन्होंने जितने भी गीत
बनाये वो सब मधुर और कर्णप्रिय की श्रेणी में आते हैं. इसकी
वजह उनका कम संगीत देना रहा या वे थे ही अलग तरह का
संगीत देने वाले इसका विश्लेषण कोई संगीत विशेषज्ञ ही कर
सकता है.
प्रस्तुत गीत गीता दत्त के आवाज़ में भी उपलब्ध है जिसे हम
सुनेंगे बाद में. मजरूह ने काफी संजीदा गीत लिखा है और इसके
बोल और धुन आपको किसी और दुनिया में पहुंचा देते हैं थोड़ी
देर के लिए.
गीत के बोल:
है ये दुनिया कौन सी ऐ दिल मुझे क्या हो गया
जैसे मंज़िल पर कोई आ के मुसाफ़िर खो गया
है ये दुनिया कौन सी ऐ दिल मुझे क्या हो गया ...
मैं हूँ इक पंछी अकेला इस गगन की छांव में
मैं हूँ इक पंछी अकेला इस गगन की छांव में
उड़ते उड़ते आ गया हूँ बादलों के गांव में
अपने ही सपनों की धुन में चलते चलते सो गया
है ये दुनिया कौन सी ऐ दिल मुझे क्या हो गया
जैसे मंज़िल पर कोई आ के मुसाफ़िर खो गया
सुन भी लो ग़म की सदायें दर्द का पैग़ाम लो
सुन भी लो ग़म की सदायें दर्द का पैग़ाम लो
डगमगाते जा रहे हैं आ के हमको थाम लो
फिर ना ये कहना दीवाने तू कहाँ गुम हो गया
है ये दुनिया कौन सी ऐ दिल मुझे क्या हो गया
जैसे मंज़िल पर कोई आ के मुसाफ़िर खो गया
है ये दुनिया कौन सी ऐ दिल मुझे क्या हो गया
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Hai ye duniya kaunsi-Sailaab 1956
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