चाहा था बनूँ प्यार की-गुनाहों का देवता १९६७
हीरो बना देती हैं तो कभी विलन. आदमी क्या बनना
चाहता है और क्या बन जाता है. इसे कर्मों के लेखे-जोखे
से भी जोड़ा जाता है.
सुनते हैं कुछ ऐसी ही फिलोसॉफी को दर्शाता सन १९६७ की
फिल्म गुनाहों का देवता से एक गीत मुकेश का गाया हुआ
जी काफी लोकप्रिय हुआ था.
एक दूसरा पहलू है फिलोसॉफी दारू की बोतल हाथ में ले
कर कुछ ज्यादा ही क्लीयर बाहर निकलती है. सुनते हैं
जीतेंद्र पर फिल्माया गया हुआ गीत.
गीत के बोल:
चाहा था बनूँ प्यार की राहों का देवता
मुझको बना दिया है गुनाहों का देवता
चाहा था बनूँ प्यार की राहों का देवता
मुझको बना दिया है गुनाहों का देवता
ये ज़िन्दगी तो ख़्वाब है जीना भी है नशा
दो घूँट मैने पी लिए तो क्या बुरा किया
रहने दो जाम सामने सब कुछ यही तो है
हर ग़मज़दा के आँसुओं आहों का देवता
मुझको बना दिया है गुनाहों का देवता
क़िस्मत तो चल रही है हमसे चाल हर क़दम
एक चाल हम जो चल दिए तो हो गया सितम
अब तो चलेंगे चाल हम क़िस्मत के साथ भी
ऐसा बना संसार की राहों का देवता
मुझको बना दिया है गुनाहों का देवता
होगा जहाँ भी रूप तो पूजा ही जाएगा
चाहे जहाँ भी फूल हो मन को लुभाएगा
होकर रहेगा ज़िन्दगी में प्यार एक बार
बस कर रहेगा दिल में निगाहों का देवता
मुझको बना दिया है गुनाहों का देवता
चाहा था बनूँ प्यार की राहों का देवता
मुझको बना दिया है गुनाहों का देवता
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Chaha tha banoon pyar ki rahon ka-Gunahon ka devta 1967