है बस कि हर एक-मिर्ज़ा ग़ालिब १९५४
है आपके लिए. फिल्म में मिर्ज़ा की भूमिका भारत भूषण ने
निभाई है. गीत किसी और कलाकार पर फिल्माया गया है फिल्म
में. एक मांगने वाला इसे गा रहा है. गौरतलब है उस समय के
मांगने वाले भी बड़े साहित्यिक किस्म के हुआ करते थे.
मिर्ज़ा के प्रश्न पूछने के जवाब में वो भी कुछ पंक्तियाँ अपनी तरफ
से गा रहा है उनकी शान में बिना ये जाने के प्रश्न पूछने वाले
स्वयं मिर्ज़ा हैं.
गीत रफ़ी ने गाया है और संगीत है गुलाम मोहम्मद का.
गीत के बोल:
है बस कि हर एक उनके इशारे में निशान और
करते हैं मुहब्बत तो गुज़रता है गुमान और
या रब न वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
या रब न वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और भी दिल इनको जो न दे मुझको ज़बां और
दे और भी दिल इनको जो न दे मुझको ज़बां और
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
ले आएंगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जान और
ले आएंगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जान और
है और भी दुनिया में सुखनवार बहुत अच्छे
है और भी दुनिया में सुखनवार बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और
है और भी दुनिया में सुखनवार बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और
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Hai bas ke hare k-Mirza Ghalib 1954
Artist:Bharat Bhushan