वो परी कहाँ से लाऊँ-पहचान १९६९
कई गीतकार उनके साथ जुड़े क्यूंकि उस समय तक शैलेन्द्र हसरत
की जोड़ी शैलेन्द्र के जाने के बाद अधूरी रह गयी उसके अलावा एक
और वजह रही-शंकर जयकिशन की जोड़ी के बीच अलगाव. दोनों ने
अलग-अलग काम करना शुरू कर दिया था. काम अलग भले ही
करते रहे हों दोनों मगर जोड़ी का नाम बरकरार रहा.
सुनते हैं सन १९६९ की फिल्म पहचान से एक और गीत जो कि तीन
गायकों ने गाया है-मुकेश, सुमन और शारदा.
गीत हास्य पुट लिए है और इसमें लड़कियों के फैशन पर कटाक्ष है.
मनोज कुमार ने ग्रामीण युवक की भूमिका निभाई है फिल्म में. इस
गीत में बबीता और मनोज कुमार प्रमुख कलाकार हैं.
गीत के बोल:
वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको
कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको
वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको
कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको
वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको
कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको
ये तो मेरी है सहेली दिलवाली अलबेली
जैसे मोतिया चमेली जैसे प्यार की हवेली
सोलह साल की उमर कोका-कोला सी कमर
रत्ती भर भी क़सर कहीं आये न नज़र
कुछ हुआ है असर?
गोल जूड़े में ये वेणी और वेणी में ये टहनी
कैसे जूड़ियों से पेड़ उगाये
ये गंगाराम के समझ में न आये
वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको
कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको
आँख जिसकी है बिल्ली नाम उसका है लिल्ली
ऐसे कजरे की धार जैसे तीखी तलवार
ओ ओ ओ देख होंठों का ये रंग चलने का ढंग
कटे अंग्रेज़ी बाल बाँधा रेशमी रुमाल
बोलो क्या है खयाल?
इसे जब लिया तक़ मेरा दिल हुआ फ़क़
छोरी हो के हजामत कराये
ये गंगाराम के समझ में न आये
वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको
कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको
नाम इसका कमाल जैसे गन्ने की फसल
जैसे खिला है गुलाब देख पूरा है शबाब
देख रूप की उमंग जैसे हिरनी के अंग
जैसे मीठी हो खजूर ऐसा मुखड़े पे नूर
बोल है मंज़ूर
ये तो नाचे छम छम मेरा निकले है दम
इसे भांगडा कौन नचाये
ये गंगाराम की समझ में ना आये
वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ
कि गोरी कोई पसन्द न आये तुझको
कि छोरी कोई पसन्द न आये तुझको
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Wo pari kahan se laaoon-Pehchan 1969
Artists: Manoj Kumar, Babita
1 comments:
मनोरंजक है
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