तुझसे बिछड कर जिन्दा हैं-यादों के मौसम १९९०
रूमानी उपन्यास का शीर्षक हो. ऐसे नाम अब दुर्लभ हो चले हैं.
आपको आज एक गीत सुनवाते हैं जो सार्वजनिक स्थलों और
चलायमान चीज़ों पर आपने काफी सुना होगा. ये चलायमान चीज़ें
होती हैं-ऑटो रिक्शा, मिनीबस, बड़ी बस, ए सी बस, वैसी बस,
जीप, यू वी इत्यादि. लॉन्ग ड्राइव पर जा के गीत सुनना अब
रईसों का शगल नहीं बचा. लोडिंग ट्रक और टेम्पो के ड्राइवर कुछ
ज़रूरत से ज्यादा लॉन्ग ड्राइव पर जाते हैं और जी भर के गीत
सुनते हैं.
अब ड्राइव तो ड्राइव है चाहे बैलगाडी की हो या फिर किसी बस की.
सार्वजनिक आवागमन के साधनों की एक विशेषता होती है उन पर
अक्सर वे गीत बजते मिलेंगे जो आपको पसंद नहीं होते. मुझे
लगता है मर्फी के ज़माने में टेम्पो ऑटो वगैरह नहीं थे अन्यथा
वो इस पर भी ज़रूर कोई नियम बना देता. चलो इसे ही एक नियम
समझ लो और बर्फी लॉ कह लो.
प्रस्तुत गीत अनुराधा पौडवाल का गाया हुआ बेहद लोकप्रिय गीत है.
फिल्म यादो के मौसम से. फिल्म के गीत काफी लोकप्रिय रहे हैं.
गीत लिखा है सलाउद्दीन परवेज़ ने और धुन बनाई आनंद मिलिंद ने.
गीत के बोल:
तुझसे बिछड के जिन्दा हैं
तुझसे बिछड के जिन्दा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
तुझसे बिछड के जिन्दा हैं
तुझसे बिछड के जिन्दा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
तपती दोपहरी में तेरी आहट दिल में आती थी
तपती दोपहरी में तेरी आहट दिल में आती थी
बारिश के एक दिल के अंदर रिमझिम राग सुनाती थी
अब हम और तपती दोपहरी बीच में यादें जिन्दा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
शाम को अक्सर छत पे आ कर डूबता सूरज तकती थी
शाम को अक्सर छत पे आ कर डूबता सूरज तकती थी
तो उसकी तब लाली जानम हाथ की मेहँदी लगती थी
मेहँदी तू नाराज़ ना होना हम तुझसे शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
हम रहते थे तुझसे लिपट कर तो कितना सच लगता था
हम रहते थे तुझसे लिपट कर तो कितना सच लगता था
सर्द अँधेरी रात में जानम एक दिया सा जलता था
अब तेरी विरह की रातें निसले तेरे ताबिन्दा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
तुझसे बिछड के जिन्दा हैं
तुझसे बिछड के जिन्दा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
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Tujhse bichhad kar jinda hain-Yaadon ke mausam 1990
1 comments:
awesome
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