हमरी अटरिया पे-डेढ़ इश्किया २०१४
हैं. कुछ पारंपरिक गीतों से इसके बोल हैं और धुन भी तकरीबन
वैसी ही है. इसे रेखा भरद्वाज ने गाया है.
अटरिया शब्द से एक पुराना गीत सहसा याद हो आता है-मोरी
अटरिया पे कागा बोले कोई आ रहा है. उसके अलावा अटरिया
शब्द वाले दो गीत और याद आते हैं-आया आया अटरिया पे
कोई चोर-मेरा गांव मेरा देश से साथ ही मिथुन की फिल्म वाला
चढ गया ऊपर रे अटरिया पे लोटन कबूतर रे. गौरतलब है ये
शब्द लोक गीतों और पारंपरिक गीतों के लिए एकदम फिट है.
किसी डिस्को खिसको गीत में ये अजीब लगेगा शायद.
गीत गुलज़ार ने लिखा है और संगीत है विशाल भारद्वाज का.
गीत के बोल:
सज के सजाये बैठी साज़िंदे बुलाये बैठी
कहाँ गुम हुआ अंजाना
आले आले दीये भी जलाए रे जलाए
ना अटरिया पे आया परवाना
कौन सा तन हाय बरमाये रे
हमरी अटरिया पे
आजा रे सांवरिया
देखा-देखी तनिक होई जाए
किवड़िया से लग के पिया करे झांका-झांकी
बहुत कौड़ी फेंके पिया उड़ावे जहां की
कसम देवे जां की
आ जा गिलौरी खिलाई दूँ किमामी
लाली पे लाली तनिक हुई जाये
हमरी अटरिया पे
पड़ोसन के घरवा जईहो
जईहो ना सांवरिया
सौतन से बोली मोरी काटे जहरिया
जहरी नजरिया
आजा अटरिया पे पिलाई दूँ अंगूरी
जोरा-जोरी तनिक हुई जाये
हमरी अटरिया पे
सजने लगाये बैठी
चुटिया घुमाये बैठी
कहाँ गुम हुआ अनजाना
कौन सा तन हाये बरमाये रे
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Hamri atariya pe-Dekh Ishkiya 2014
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