ज़ख्म-ए-तन्हाई में-गुलाम अली गज़ल
गुलाम अली की गाई हुई.
बोल:
ज़ख्म-ए-तन्हाई में खुश्बू-ए-हिना किसकी थी
ज़ख्म-ए-तन्हाई में खुश्बू-ए-हिना किसकी थी
साया दीवार पे मेरा था सदा किसकी थी
ज़ख्म-ए-तन्हाई में खुश्बू-ए-हिना किसकी थी
आंसुओं से ही सही भर गया दामन मेरा
आंसुओं से
आंसुओं से ही सही भर गया दामन मेरा
हाथ तो मैंने उठाये थे दुआ किसकी थी
हाथ तो मैंने उठाये थे दुआ किसकी थी
साया दीवार पे मेरा था सदा किसकी थी
मेरी आहों की ज़बां कोई समझता कैसे
मेरी
मेरी आहों की ज़बां कोई समझता कैसे
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी
ज़िन्दगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी
साया दीवार पे मेरा था सदा किसकी थी
छोड़ दी किसके लिए तूने मुज़फ्फर दुनिया
हाँ
छोड़ दी किसके लिए तूने मुज़फ्फर दुनिया
जुस्तजू सी तुझे हर वक्त बता किसकी थी
जुस्तजू सी तुझे हर वक्त बता किसकी थी
साया दीवार पे मेरा था सदा किसकी थी
ज़ख्म-ए-तन्हाई में खुश्बू-ए-हिना किसकी थी
साया दीवार पे मेरा था सदा किसकी थी
ज़ख्म-ए-तन्हाई में
……………………………………………………..
Zakhm-e-tanhai mein khusboo-Ghulam Ali Ghazal
0 comments:
Post a Comment