कभी ख़ुद पे कभी हालात पे-हम दोनों १९६१
का एक गीत है जो नायक के हालात बयां कर रहा है. ये
गीत इतना अपना सा लगने लगता है सुनने वाले को खास
कर के आखिरी अंतरे को सुनने के बाद कि सुनने वाला
इसका दीवाना हो जाता है.
साहिर लुधियानवी का ये सरल सा गीत जयदेव की आकर्षक
धुन में बंधा है. इसे रफ़ी ने गाया है. अंत में एक जुमला और
ठोंक देते हैं पोस्ट में-जब कुछ समझ ना आये तो एक लाइन
लिख दो साहिर के १००% सर्टिफाइड फैन की तरह(जैसे किसी
देसी डेरी का देसी शुद्ध घी होता है १०० टका शुद्ध) -साहिर का है
अंदाज़-ए-बयां और.......कईयों को तो मैंने साहिर के गीतों में
वर्णित जीवन की स्तिथियों के पैरेलल ड्रा करते करते पैरेललोग्राम
बनाते देखा है.
गीत के बोल:
कभी ख़ुद पे
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना
हम तो समझे थे के हम भूल गए हैं उनको
हम तो समझे थे
हम तो समझे थे के हम भूल गए हैं उनको
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना
किसलिये जीते हैं हम
किसलिये जीते हैं हम किसके लिये जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
कभी ख़ुद पे
……………………………………………………………
Kabhi khud pe kabhi halaat pe-Ham dono 1961
Artist: Hum dono
0 comments:
Post a Comment