ग़म बढ़े आते हैं कातिल-जगजीत सिंह ग़ज़ल
जिसे जगजीत सिंह ने गाया है.
बोल:
ग़म बढ़े आते हैं कातिल की निगाहों की तरह
तुम छुपा लो मुझे ऐ दोस्त गुनाहों की तरह
अपनी नज़रों में गुनहगार न होते क्यूँ कर
अपनी नज़रों में गुनहगार न होते क्यूँ कर
दिल ही दुश्मन हैं मुखालिफ़ के गवाहों की तरह
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तेरी याद का साया है पनाहों की तरह
तुम छुपा लो मुझे ऐ दोस्त गुनाहों की तरह
जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाए फ़ाकिर
वो भी पेश आए हैं इंसाफ के शाहों की तरह
ग़म बढ़े आते हैं कातिल की निगाहों की तरह
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Gham badhe aate hain-Jagjit Singh ghazal
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