ठण्डी ठण्डी सावन की फुहार-जागते रहो १९५६
जागते रहो से. गीत शैलेन्द्र का लिखा हुआ है और सलिल चौधरी
का संगीत है.
फिल्म में लता का गाया एक गीत है जो काफी प्रचलित है और
आपने उसे सुन रखा है. उस गाने पर काफी कसीदाकारी हो चुकी
है अभी तक, कुछ यूँ, जैसे कुर्ते पर किया जाने वाला एम्ब्रोयड्री का
काम किसी रुमाल पर कर दिया गया हो. एक दूसरे उदाहरण से
समझते हैं-कोई केक बनाने वाला कारीगर इतना गदगद हो गया
कि उसने केक के अलावा दुकान में रखी मिठाइयों और नमकीन
पर भी आइसिंग कर डाली. उसकी इच्छा तो दुकान के दरवाज़े पर
भी पोता-पाती करने की हो रही थी, मगर....
ऐसा ही होता है कभी कभी एक गाने की छाया में कई गाने गुम
हो जाया करते हैं. आशा का गाया एक गीत जो श्रवणीय है मगर
कम श्रवणा हुआ है उसे आज आप सुनेंगे. अच्छे गाने ज़रूर सुनना
चाहिए और ढूंढ ढूंढ के सुनना चाहिए उससे मन का हाजमा दुरुस्त
रहता है.
गीत के बोल:
ठण्डी ठण्डी सावन की फुहार
पिया आज खिड़की खुली मत छोड़ो
आवे झोंके से पगली बयार
पिया आज बाती जली मत छोड़ो
ठण्डी ठण्डी सावन की फुहार
दिये की ज्योति अखियों में लागे
दिये की ज्योति
दिये की ज्योति अखियों में लागे
पलकों पे निन्दिया सवार
पिया आज बाती जली मत छोड़ो
ठण्डी ठण्डी सावन की फुहार
पपीहे ने मन की अग्नि बुझा ली
पपीहे ने मन की
पपीहे ने मन की अग्नि बुझा ली
प्यासा रहा मेरा प्यार
पिया आज बाती जली मत छोड़ो
ठण्डी ठण्डी सावन की फुहार
पिया आज खिड़की खुली मत छोड़ो
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Thandi thandi sawan ki phuhaar-Jaagte raho 1956
Artists: Motilal, Sumitra Devi
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