आंसू भी दे सके ना-लाबेला १९६६
आवाज़ में. आनंद बक्षी के बोल हैं और सी रामचंद्र का संगीत. गीत
में आपको गिटार की कॉर्ड्स भी सुनाई देंगी जो समय के साथ साथ
सी रामचंद्र के संगीत में आ गयीं.
आनंद बक्षी ६० के दशक में लक्ष्मी प्यारे से जुड़ने के पहले तक एक
प्रतिभावान और उदयीमान गीतकार माने जाते थे. सी रामचंद्र अपने
कैरियर के ढलान की ओर अग्रसर थे. प्रकृति का नियम है जो ऊपर
चढा है उसे नीचे आना ही है. यही बात लगभग जीवन के हर पहलू
पर लागू होती है.
भगवान निर्देशित इस फिल्म में सुजीत कुमार और कुमकुम की प्रमुख
भूमिकाएं हैं. भगवान का भी फ़िल्मी कैरियर ६० के दशक में ढलान की
ओर बढ़ता गया और आगे चल के उन्हें सहायक भूमिकाएं निभा के
अपना जीवन यापन करना पड़ा. लाबेला अलबेला ना बन सकी.
आदतें जाते जाते ही जाती हैं. राजेंद्र कृष्ण के साथ सी रामचंद्र ने जो
काम किया उनमें अधिकांश गीतों में शुरू में मुखड़े से पहले दो चार
पंक्तियाँ या शेर-चीते अवश्य हुआ करते थे. इस गीत में मौजूद है.
आनंद बक्षी की लेखनी में ऐसे गीत कम हैं मगर हैं ज़रूर. आपको
याद हो गर चरस फिल्म का गीत जिसकी शुरूआती पंक्तियाँ बक्षी
ने स्वयं गाई हैं. गीत है–आ जा तेरी याद आई जिसमें मुख्य स्वर
रफ़ी और लता के हैं.
गीत के बोल:
कभी तकदीर ने इतना हमें मजबूर कर डाला
के हमने आप अपनों को नज़र से दूर कर डाला
आँसू भी दे सके न सहारे कभी-कभी
सहारे कभी कभी
रोने लगे जो रंज के मारे कभी कभी
आँसू भी दे सके ना सहारे कभी कभी
सहारे कभी-कभी
बादल कहीं बरस के जो रोया तो क्या हुआ
तूफान ने सफ़ीना डुबोया तो क्या हुआ
कश्ती डुबो गए हैं किनारे कभी कभी
किनारे कभी कभी
रूठा जहान हमसे खफ़ा आसमां हुआ
अपने ही आशियां पे कफ़स का गुमां हुआ
ऐसे भी दिन चमन में गुजारे कभी-कभी
गुजारे कभी-कभी
रोने लगे जो रंज के मारे कभी-कभी
आँसू भी दे सके ना सहारे कभी-कभी
सहारे कभी-कभी
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Ansoo bhi de sake na-Labela 1966
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