Feb 18, 2018

उल्फ़त के हैं काम निराले-आवाज़ १९५६

सन १९५६ की आवाज़ की गूँज कितनी दूर तक सुनाई दी
ये तो नहीं बतलाया जा सकता अलबत्ता राजेश खन्ना वाली
आवाज़ की गूँज कुछ समय तक सुनाई ज़रूर दी.

यहाँ गूँज से तात्पर्य फिल्म के गीतों से है. पुरानी आवाज़
में सलिल चौधरी का संगीत है तो नयी आवाज़ में पंचम का.

सुनते हैं ज़िया सरहदी का लिखा और लता मंगेशकर का गाया
५६ की आवाज़ से यह गीत. इसे फिल्म का शीर्षक गीत भी
कहा जा सकता है.




गीत के बोल:

हसरत-ओ-यास को ले कर शब-ए-ग़म आई है
भीड़ की भीड़ है तन्हाई ही तन्हाई है

उल्फ़त के हैं काम निराले बन बन के बिगड़ जाते हैं
क़िस्मत में न हो तो साथी मिल मिल के बिछड़ जाते हैं
उल्फ़त के हैं काम निराले

उम्मीदें भी हैं इक सपना दुनिया में नहीं कुछ अपना
उम्मीदें भी हैं इक सपना ढूनिया में नहीं कुछ अपना
आँसू हैं तो बह जाते हैं अरमाँ है तो मर जाते हैं
उल्फ़त के हैं काम निराले

आवाज़ उठी है दिल से बेदर्द ज़माने सुन ले
आवाज़ उठी है दिल से बेदर्द ज़माने सुन ले
कल तू भी उजड़ जायेगा हम आज उजड़ जाते हैं

उल्फ़त के हैं काम निराले बन बन के बिगड़ जाते हैं
क़िस्मत में न हो तो साथी मिल मिल के बिछड़ जाते हैं
उल्फ़त के हैं काम निराले
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Ulfat ke hain kaam nirale-Awaaz 1956

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