Mar 3, 2018

ओ बदरा बहार-क्वीन २०१४

कविता और गीतों में कब आसमान अजवाइन के पराठे
सा दिखाई देने लगे कहा नहीं जा सकता. हम सुनहरे कल
की और बढ़ रहे हैं. कई साल पहले ये वाक्य जगह जगह
लिखा दिखाई देता था. ट्रेन से बाहर देखने पर बहार ही
बहार दिखलाई देती थी. कहीं खेत खलिहानों की बहार,
कहीं विज्ञापन से सनी पुती हुई दीवारों की बहार तो किसी
जगह लोटा बोतल लिए बैठे जंतुओं की कतार.

झट से सुनते हैं फिल्म क्वीन का एक गीत जिसे लिखा
है अन्विता दत्त गुप्तन ने. अमित त्रिवेदी ने इसकी धुन
बनाई है और इसे गाया भी है.



गीत के बोल:

हो बाबुल के अंगना में
अम्बुवा के तले
नेहर की दुलारी
नाजों से पली
मेरी मेरी गुडिया बचपन की
संदेसा ले जा रे
ओ बदरा बहार

सिसके रे जियरा
बहता रे कजरा
रे चुगता रहा रे
मैं भूली सखियाँ
बचपन की बतियाँ
घुन घुन ये सांस घबराये
पिया को बता दे आ हा
ओ बदरा बहार
ओ बदरा बहार
हो ओ बदरा बहार
..........................................................
Badra Bahar-Queen 2014

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