Jul 5, 2018

ले गई खुशबू-फिर कब मिलोगी १९७४

एक तो होती है उत्पादकता. दूजी चीज भी होती है
जिसे कहते हैं खुजात्मकता. उत्पादकता तो समझ
आती है किसी उद्देश्य विशेष से जुडी हुई गतिविधि.
कुछ क्रियाएँ ऐसी होती हैं जिनका ओर-छोर ही
समझ से परे होता है. उस पर हम सोचते हैं क्यूँ
हुआ, कैसे हुआ, जबरन हुआ वगैरह वगैरह.

गीत की एक पंक्ति है- ना समझ में आये पर बात
सुन ले पिया, ये मिलन को मैंने सौ रंग हैं बदले
पिया. कवि अपने कलम से और संगीतकार अपनी
धुन से ये समझाना चाह रहा है कि इस सिचुएशन
पर क्या और क्यूँ ? जबरिया गाने बनवाओगे तो
ऐसा ही कुछ निकल के आएगा ना.

इस कॉम्प्लेक्स से गीत को लिखा है मजरूह ने
और इसमें धुन की रूह डाली है पंचम ने. गायिका
को आप पहचानते ही हैं. संयोग है कि कॉम्प्लेक्स
से गीत में गुलज़ार का नाम भी आया है.




गीत के बोल:

आ आ आ आ आ आ आ
हूँ हूँ हूँ हूँ

ले गई खुशबू
ले गई खुशबू मांग  के बहार
ले गई खुशबू मांग  के बहार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार
ले गई खुशबू

अब तो मोहब्बत दिल में समाई
काली लटें गोरा गोरा बदन ले के
तेरे पास आई
है समाया सैयां इन मेरी आहों में तू
हूँ महक मैं तेरी रखना मुझे बाहों में तू
आ गया मौसम छोड़ के गुलज़ार
आ गया मौसम छोड़ के गुलज़ार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार
ले गई खुशबू

मेरा तो ऐसा प्यार अनोखा
कभी कभी हुआ बलम खुद पे
और का धोखा
ना समझ में आये पर बात सुन ले पिया
ये मिलन को मैंने सौ रंग हैं बदले पिया
तोड़ के आई लाज की दीवार
तोड़ के आई लाज की दीवार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार

ले गई खुशबू मांग  के बहार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार
महकी मैं ऐसी ले के तेरा प्यार
………………………………………………
Le gayi khusboo-Phir kab milogi 1974

Artists: Mala Sinha, Biswajeet

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