उस मुल्क की सरहद को-आँखें १९६८
हैं आँखें फिल्म से. इसमें थोडा सा दर्शन भी छुपा
हुआ है.
साहिर ने इस गीत में दो शब्दों का प्रयोग किया है
-तराज़ू और मीज़ान. दोनों का अर्थ एक ही है.
गीत के बोल:
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें
हर तरह के जज़्बात का ऐलान हैं आँखें
हर तरह के जज़्बात का ऐलान हैं आँखें
शबनम कभी शोला कभी तूफ़ान हैं आँखें
आँखों से बड़ी कोई तराज़ू नहीं होती
आँखों से बड़ी कोई तराज़ू नहीं होती
घुलता है बसर जिसमें वो मीज़ान हैं आँखें
घुलता है बसर जिसमें वो मीज़ान हैं आँखें
आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
अनजान हैं हम तुम अगर अनजान हैं आँखें
अनजान हैं हम तुम अगर अनजान हैं आँखें
लब कुछ भी कहें उससे हकीक़त नहीं खुलती
लब कुछ भी कहें उससे हकीक़त नहीं खुलती
इंसान के सच झूठ की पहचान हैं आँखें
इंसान के सच झूठ की पहचान हैं आँखें
आँखें ना झुकें तेरी किसी गैर के लिए
आँखें ना झुकें तेरी किसी गैर के लिए
दुनिया में बड़ी चीज मेरी जान हैं आँखें
दुनिया में बड़ी चीज मेरी जान हैं आँखें
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें
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Us mulk ki sarhad ko-Aankhen 1968
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