दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा-औरत १९५३
दर्द-ए-liver के ऊपर थोड़े कम गीत बने हैं. शरीर की लेबोरेट्री के pain
को समर्पित गीतों में प्रस्तुत गीत ऊंचा स्थान रखता है.
फिल्म का नाम है औरत. सन १९५३ की इस फिल्म से आप पूर्व
में कुछ गीत सुन चुके हैं. गीत लिखा है शैलेन्द्र ने और इसे गाया
है लता मंगेशकर ने शंकर जयकिशन की धुन पर.
गीत के बोल:
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
दम तो मुझे लेने दे दम तो मुझे लेने दे
जिसने मिटाया है मुझे उसको दुआ देने दे
उसको दुआ देने दे
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
दिल की लगी क्या है जान लूं तो बहुत अच्छा हो
मैं जो घुट घुट के जान दूं तो बहुत अच्छा हो
मैं जो घुट घुट के जान दूं तो बहुत अच्छा हो
कल जहाँ बसाया था कल जहाँ बसाया था
आज मिटा लेने दे आज मिटा लेने दे
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
मेरी बर्बाद मोहब्बत ना कर किसी से गिला
ना कर किसी से गिला
वफ़ा का इस जहाँ में है तो बस यही है सिला
वफ़ा का इस जहाँ में है तो बस यही है सिला
हो यही है सिला
ए मेरी लगी तू मुझे ए मेरी लगी तू मुझे
अपनी सजा लेने दे अपनी सजा लेने दे
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
बुत न जगे मेरी मायूस सदा लौट आई
लिपट के मुझसे रो रही है मेरी तन्हाई
लिपट के मुझसे रो रही है मेरी तन्हाई
कब तलक जले ये शमा कब तलक जले ये शमा
अब तो बुझा लेने दे अब तो बुझा लेने दे
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
दर्द-ए-जिगर ठहर ज़रा
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Dard-e-dil thahar zara-Aurat 1953
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