Aug 6, 2019

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं-जगजीत सिंह

सबा अफ़गानी की लिखी हुई ग़ज़ल सुनते हैं जगजीत सिंह की
आवाज़ में. कागज़ के लिफ़ाफ़े के लिए जैसे gum की ज़रूरत होती
है वैसे ही जिंदगी के लिफ़ाफ़े के लिए गम की ज़रूरत होती है.

प्रकृति के श्रृंगार में कांटे भी अहम भूमिका निभाते हैं. गुलाब के
पौधे से अच्छा उदाहरण कहाँ मिलेगा हमको. कैक्टस खूबसूरत
ना होते तो रईस लोग उसे अपने घरों में ना सजाया करते. इससे
ज्यादा व्याख्या शायद मेरे स्कोप में नहीं है. मैं वाइज़-ए-नादान
नहीं बनना चाहता यहाँ. हाँ फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ां का मतलब बतलाये
देते हैं-शिकायत और रोना.




गीत के बोल:

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं कांटों से भी ज़ीनत होती है
गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं कांटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिये इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है

ऐ वाइज़-ए-नादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा
ऐ वाइज़-ए-नादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है

वो पुरसिश-ए-ग़म को आये हैं कुछ कह न सकूं चुप रह न सकूं
वो पुरसिश-ए-ग़म को आये हैं कुछ कह न सकूं चुप रह न सकूं
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है

करना ही पड़ेगा ज़क़त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
करना ही पड़ेगा ज़क़त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ां से ए नादान तौहीन-ए-मोहब्बत होती है
फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ां से ए नादान तौहीन-ए-मोहब्बत होती है

जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क़ नहीं हैं पानी है
जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क़ नहीं हैं पानी है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क़ की क़ीमत होती है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क़ की क़ीमत होती है

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं कांटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिये इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है
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Gulshan ki fakat phoolon se-Jagjit Singh

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