Aug 7, 2019

जिंदगी ए जिंदगी-जिंदगी जिंदगी १९७२

जीवन की क्षणभंगुरता का आभास तब होता है जब कोई अपना
बिछड़ जाता है. ये ऐसे पल होते हैं जब व्यक्ति अपने जीवन की
सार्थकता को मापता है.

शरीर की मशीनरी चलाने के लिए तो अधिकाँश जीते हैं मगर वे
लोग जो दूसरों के लिए जीते हैं सही मायने में याद करने लायक
होते हैं. चाहे वो उनके जीवन काल में हो या उनके जाने के बाद,
उनके सृजनात्मक योगदान और सृष्टि के जीवों की सहायता सदा
याद रखी जाती है. परस्पर सम्बन्ध वाली इस सृष्ट में मानव ही
अक्सर अपना रोल और कर्तव्य भूल जाता है क्यूंकि उसके पास
सबसे अधिक बुद्धि है दूसरे जीवों की तुलना में. ज़रूरतमंद केवल
वही नहीं है जिसे पैसे की ज़रूरत है. क्या आपने कभी किसी के
लिए ऐसे कंधे बने हैं जिस पर सर टिका कर कोई अपना दुःख
हल्का कर सके.

प्रस्तुत है आनंद बक्षी का लिखा हुआ और सचिन देव बर्मन द्वारा
संगीतबद्ध और गाया हुआ गीत फिल्म जिंदगी जिंदगी से. बक्षी
के लिखे हुए जीवन दर्शन वाले गीतों में शायद इस गीत को समझ
पाना सबसे ज्यादा कठिन है.




गीत के बोल:

जिंदगी ए जिंदगी, जिंदगी तेरे हैं दो रूप
जिंदगी ए जिंदगी, जिंदगी तेरे हैं दो रूप
बीती हुई रातों की, बातों की तू छाया
छाया वो जो बनेगी धूप

कभी तेरी किरणें थी ठंडी ठंडी हाय रे
अब तू ही मेरे जी में आग लगाये
कभी तेरी किरणें थी ठंडी ठंडी हाय रे
अब तू ही मेरे जी में आग लगाये
चांदनी ए चांदनी, चांदनी तेरे हैं दो रूप
टूटे हुए सपनों की, अपनों की छाया
छाया वो जो बनेगी धूप

आते जाते पल क्या हैं समय के ये झूले हैं
बिछड़े साथी कभी याद आये कभी भूले हैं
आते जाते पल क्या हैं समय के ये झूले हैं
बिछड़े साथी कभी याद आये कभी भूले हैं
आदमी ए आदमी, आदमी तेरे हैं दो रूप
दुःख सुख के झूलों की, फूलों की तू छाया
छाया वो जो बनेगी धूप
छाया वो जो बनेगी धूप

कोई भूली हुई बात मुझे याद आई है
खुशी भी तू लायी थी ये आंसू भी तू लायी है
दिल्लगी ए दिल्लगी, दिल्लगी तेरे हैं दो रूप
कैसे कैसे वादों की, यादों की तू छाया
छाया वो जो बनेगी धूप
……………………………………………………………………
Zindagi ae zindagi-Titlesong 1972

Artist: Sunil Dutt

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP