Jan 3, 2020

जगत मुसाफ़िरखाना-बालिका वधु १९७६

सृष्टि एक सराय ही तो है. भांति भांति यात्री अपने
चोले में जीवन यात्रा व्यतीत करने हेतु यहाँ आते हैं.
कोई मनुष्य के चोले में तो कोई पेड़-पौधे या जानवर
के चोले में आता है. सबकी एक्सपायरी डेट है. किसी
की कुछ क्षण तो किसी की हज़ारों साल.

सुनते हैं एक फिलोसोफ़िक गीत फिल्म बालिका वधु
से. आनंद बक्षी की रचना है जिसे भूपेंद्र ने स्वर दिया
है आर डी बर्मन के संगीत निर्देशन में.




गीत के बोल:

जगत मुसाफ़िरखाना
लगा है आना जाना
जगत मुसाफ़िरखाना
लगा है आना जाना

चाँद छुपे तो सूरज निकले
सूरज डूबे हो जाये शाम
चाँद छुपे तो सूरज निकले
सूरज डूबे हो जाये शाम
रुत आये रुत जाये मौसम
आने जाने का है नाम
हो जोगी किसका ठौर ठिकाना
लगा है आना जाना

देखे पहुँचे कौन कहाँ पर
राही निकला गाता हँसता
देखे पहुँचे कौन कहाँ पर
राही निकला गाता हँसता
सबकी अपनी अपनी मंज़िल
अपना अपना रस्ता
हो जोगी जीवन पथ अनजाना
लगा है आना जाना

चार दिनों का मेल है भैया
जिसने सारे खेल रचाये
चार दिनों का मेल है भैया
जिसने सारे खेल रचाये
माँ बच्चों से मिलने आये
फिर वापस घर जाये
हो जोगी ये दस्तूर पुराना
लगा है आना जाना

जगत मुसाफ़िरखाना
लगा है आना जाना
…………………………………………………..
Jagat musafirkhana-Balika Vadhu 1976

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