तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा-आखिरी दांव १९५८
है. अजी जनाब बिलकुल हो सकता है. सज्जाद हुसैन की
एक धुन- ये हवा ये रात ये चांदनी मदन मोहन को इतनी
भाई कि उन्होंने इस पर एक गीत बना डाला. इसको कहते
हैं असली ट्रिब्यूट.
सज्जाद हुसैन ने गाना गवाया तलत महमूद से तो इधर
आखिरी दांव फिल्म के लिए मदन मोहन ने रफ़ी से गाना
गवाया.
प्रस्तुत गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है और इसे परदे
पर गा रहे हैं शेखर और नूतन से मुखातिब हैं. शम्मी बाजू
में बैठी है. शम्मी के ऊपर फिल्म संगदिल का गीत फिल्माया
गया था. संयोग है दोनों गीतों से शम्मी का कनेक्शन है.
नूतन के चहरे के भाव कुछ ऐसे हैं जैसे कुछ अप्रत्याशित
सा नायक के मुख से निकल के बाहर आ रहा हो. गाने वाले
और सुनने वाले के चेहरों के भाव गीत के अंत में देखिये
आनंद आयेगा.
गीत के बोल:
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
तेरे सामने मेरा हाल है
तेरी इक निगाह की बात है
मेरी ज़िंदगी का सवाल है
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
मेरी हर ख़ुशी तेरे दम से है
मेरी ज़िंदगी तेरे ग़म से है
मेरी हर ख़ुशी तेरे दम से है
मेरी ज़िंदगी तेरे ग़म से है
तेरे दर्द से रहे बेख़बर
मेरे दिल की कब ये मजाल है
तेरी इक निगाह की बात है
मेरी ज़िंदगी का सवाल है
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
तेरे हुस्न पर है मेरी नज़र
मुझे सुबह शाम की क्या ख़बर
तेरे हुस्न पर है मेरी नज़र
मुझे सुबह शाम की क्या ख़बर
मेरी शाम है तेरी जुस्तजू
मेरी सुबह तेरा ख़याल है
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
मेरे दिल जिगर में समा भी जा
मेरे दिल जिगर में समा भी जा
रहे क्यों नज़र का भी फ़ासला
मेरे दिल जिगर में समा भी जा
रहे क्यों नज़र का भी फ़ासला
के तेरे बग़ैर तो जाने जान
मुझे ज़िंदगी भी मुहाल है
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
तेरे सामने मेरा हाल है
तेरी इक निगाह की बात है
मेरी ज़िंदगी का सवाल है
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा
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Tujhe kya sunaoon main dilruba-Aakhiri daon 1958
Artist: Nutan, Shekhar
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