ज़ुल्फ़ लहराई तो-खून का बदला खून १९७८
है. अपने ज़माने का लोकप्रिय गीत जी ना जाने कहाँ
खो गया. वाणी जयराम ने इसे गाया है और आप इस
बात का यकीन नहीं कर सकते कि वाणी जयराम से
बोले रे पपीहरा जैसे गानों के अलावा भी कुछ और
उम्मीद हम कर सकते हैं.
आपको एक भूतिया फिल्म दो गज ज़मीन के नीचे
का गाना सुनवाया था जो वाणी जयराम ने गाया है.
वो भी थोडा तेज गति वाला गीत है मगर प्रस्तुत
गीत की बात और है कुछ.
परदे पर इसे एक हेल्दी अभिनेत्री आशा सचदेव पर
फिल्माया गया है. नायक महेंद्र संधू उनकी उछल कूद
का आनंद ले रहे हैं. महेंद्र संधू को जनता प्यार से
देसी जेम्स बाँड भी बुलाती थी.
गीत के बोल:
ज़ुल्फ़ लहराई तो
ज़ुल्फ़ लहराई तो सावन का महीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
आसमा पर हाय
आसमा पर बादलों को पसीना आ गया हाय
ज़ुल्फ़ लहराई तो
ज़ुल्फ़ लहराई तो सावन का महीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
हाय रे मेरी शोख जवानी
महके जैसे रात की रानी
दिल में प्यार के सपने सजा कर
लोग मरें जब मेरी अदा पर
दिल में प्यार के सपने सजा कर
लोग मरें जब मेरी अदा पर
मुझको भी जीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
ज़ुल्फ़ लहराई तो सावन का महीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
आसमा पर हाय
आसमा पर बादलों को पसीना आ गया हाय
ज़ुल्फ़ लहराई तो
ज़ुल्फ़ लहराई तो सावन का महीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
मै क्या जानूं रंग बदलना
पी के बहकना झूम के चलना
यारों ने आँखों से पिलाई
बन के पवन मैं भी लहराई
यारों ने आँखों से पिलाई
बन के पवन मैं भी लहराई
मुझको भी पीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
ज़ुल्फ़ लहराई तो सावन का महीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
आसमा पर हाय
आसमा पर बादलों को पसीना आ गया हाय
ज़ुल्फ़ लहराई तो
ज़ुल्फ़ लहराई तो सावन का महीना आ गया
ज़ुल्फ़ लहराई तो
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Zulf lehrayi to-Khoon ka badla khoon 1978
Artist: Asha Sachdev, Mahendra Sandhu
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