अवधूत युगन युगन हम-कबीर भजन १९७२
और निर्लिप्त रहने की प्रेरणा भी देती है. अपने आप से
उदाहरण ले कर भी ये हमें काम की बहुत सी बातें
बतला जाते हैं.
कबीर की एक रचना सुनते हैं पंडित कुमार गन्धर्व की
आवाज़ में. इसे मन लगा कर सुनिए, ये चित्त को शांत
करेगा.
अवधूत का अर्थ भी सन्यासी होता है. योगी ध्यान योग
करने वालों को भी बोला जाता है. मढ़ी का अर्थ है घर
कुटीर, झोंपड़ी. इसका अर्थ अलग अलग सामाजिक स्तिथि
के अनुसार अलग अलग समझ सकते हैं. छोटे महलों को
भी कहीं कहीं मढ़ी बोला जाता है.
गीत के बोल:
युगन युगन हम योगी
युगन युगन हम योगी
अवधूत युगन युगन हम योगी
युगन युगन हम योगी
आवैना जाय
आवैना जाय मिटैना कबहूं सबद अनाहत भोगी
योगी योगी युगन युगन हम योगी
सभी ठौर जमात हमरी सबही ठौर पर मेला
हम सब में सब हैं हम मां हम है बहुरी अकेला
योगी योगी युगन युगन हम योगी
हम ही सिद्ध समाधि हम ही हम मौनी हम बोले
रूप सरूप अरूप दिखा के हम ही में हम तो खेलें
योगी योगी युगन युगन हम योगी
कहे कबीरा जो सुनो भई साधो नाहीं न कोई इच्छा
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं खेलूँ सहज स्व-इच्छा
योगी योगी युगन युगन हम योगी
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Avhdhoot yugan yugan ham-Kabir Bhajan
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