Apr 21, 2020

ना मैं रूप देखता-अफिल्मी गीत सी रामचंद्र

आपको एक अफिल्मी गीत सुनवाते हैं चितलकर का गाया हुआ. ये एक
भजन है राधेश्याम का. इसे मैं काफ़ी सालों से सुन रहा हूँ. ये उन लोगों
के लिए है जिनके मन में काफी उथल पुथल हो रही है पिछलेकुछ दिन से.
इस ब्लॉग पर पता नहीं क्या ढूंढते रहते हैं दिन भर. ये पाठक नहीं है
इतना हम जानते हैं.

सर्वप्रथम ये समझ लें इस ब्लॉग के ज़रिये हमें रोटी प्राप्त नहीं होती है. ये
शौक के चलते हम अपनी आँखेंफोड रहे हैं. ना हमें कोई म्यूजिक कंपनी
या फिल्मलाईन वाला चवन्नी भी देता है ये सब लिखने के लिए.

ब्लॉगर और गूगल को धन्यवाद हमें अपने विचार और अनुभव साझा
करने देने के लिए. ऑरकुट एक बेहतर प्लेटफोर्म था जिसमें मर्यादित
गतिविधियां थीं. उसका बंद होना अफ़सोसजनक है.

इस साईट को और दूसरी ८-१० साइटों को पढ़ पढ़ के आप लोग इतने
ज्ञानी हुए. यहाँ तो खैर ज्यादा लोग टिप्पणी नहीं करते क्यूंकि उनको
अंग्रेजी में खाने और हगने की आदत पड़ी हुई है. बस, खाने का सामान
हिंदी वाला चाहिए.

शेखी बघारने के लिए वे अंग्रेजी में कमेन्ट करना पसंदकरते हैं. कोरोना
वायरस को भी तुम लोग अंग्रेजी गानेऔर निबंध क्यूँ नहीं सुना देते, हो
सकता है डर के मारेभाग जाए.

सर्वशक्तिमान अनेकों माध्यम से प्राणी को सन्देश भेजता रहता है मगर
प्राणी अपने अहम के चलते इन संकेतों को समझ नहीं पाता. जबरन
किसी के पीछे पड़ना ठीक नहीं, समझ लो, चाहे वो मनुष्य हो या जानवर.

कबीरदास जी कह गए हैं:

कबीर गर्व ना कीजिये उंचा देखि आवास
काल परौ भुईं लेटना उपर जमसी घास।

अर्थात अपने ऊंचे मकान पर घमंड ना कीजिये, कहीं ऐसा न हो समय
आपको ज़मीन पर ऐसी जगह सोने पर मजबूर कर दे जहाँ घाग उगती हो.
यहाँ कवि ने थोडा डिस्काउंट कर दिया है और शरीर को तकलीफ ना हो
इसलिए थोड़ी घास भी है. संभव है इससे बदतर स्तिथि में आप पहुँच जाएँ.

वर्त्तमान संकट का निमित्त कोई भी बना हो उसने मानव जाति को अच्छे से
समझा दिया कि उसकी औकात क्या है. एक सूक्ष्म जीव जिसे देखने के लिए
भी माइक्रोस्कोप की ज़रूरत पड़ती है अपने से कई गुना बड़े मानव को कैसे
परास्त कर सकता है. ये सब जो हो रहा है प्रकृति से अत्यधिक खिलवाड़ का
परिणाम है.

सोशल डिसटेंसिंग का सन्देश दिया जा रहा है मगर उसे कई लोग मानने
को तैयार नहीं मानो उन्हें कोरोना वायरस ने स्वयं वायरस-प्रूफ होने का
सर्टीफिकेट दे दिया हो.




गीत के बोल:

ना मैं रूप देखता ना मैं नाम देखता
ना मैं रूप देखता ना मैं नाम देखता
मैं तो जहाँ देखता वहां श्याम देखता
राधेश्याम देखता
ना मैं रूप देखता ना मैं नाम देखता

कहाँ नहीं उसकी परछाई
कण कण में है किशन कन्हाई
और कौन है इस धरती पर
जिसने समझी पीर पराई
ना मैं भोर देखता ना मैं शाम देखता
ना मैं भोर देखता ना मैं शाम देखता
मैं तो जहाँ देखता वहां राम देखता
सीताराम देखता

ना मैं रूप देखता ना मैं नाम देखता

डगर डगर पर इतना भटका
कहाँ कहाँ मैंने सर पटका
जहाँ गया मैं जिधर गया मैं
मन मेरा मोहन में अटका
मन मेरा मोहन में अटका
न मैं पंथ देखता ना मैं धाम देखता
न मैं पंथ देखता ना मैं धाम देखता
मैं तो जहाँ देखता वहां श्याम देखता
राधेश्याम देखता
ना मैं रूप देखता ना मैं नाम देखता
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Na main roop dekhta-Non filmi bhajan

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