तुम्हे देखती हूँ-तुम्हारे लिए १९७८
जिनसे सिनेमा की दुनिया धन्य है. हाईप्ड अभिनेता तो हमने
बहुतेरे देख लिए जो अभिनय कम और ढिंढोरे में ज्यादा यकीन
रखते हैं मगर ऐसे बिरले कलाकार कम जो अपने अभिनय के दम
पर लोगों के दिल में हमेशा के लिए जगह बना लेते हों.
ऐसे कलाकारों को चैनलों पे ठुमके नहीं लगाना पड़ते, गोरा काला
करने वाली क्रीम नहीं बेचना पड़ती. स्कैंडलों में नहीं उलझना होता,
सौम्यता के लिए ढोंग नहीं करना पड़ता.
चर्चा जारी रहेगी, एक गीत सुन लेते हैं पहले. ये अलौकिक गीत
है सन १९७८ की फिल्म तुम्हारे लिए से जिसमें संजीव कुमार के
साथ विद्या सिन्हा हैं. इस यादगार गीत की धुन जयदेव ने तैयार
की है.
बासु चटर्जी ने फिल्म का निर्देशन किया था. फिल्म की कहानी
पुनर्जन्म की अवधारणा को समेटे हुए है. दूसरी इस प्रकार की
फिल्मों से ये अलग है और निर्देशक की कुशलता है कि सभी
कलाकारों ने अच्छा अभिमय किया है. संजीव कुमार तो सहज
कलाकार थे ही, विद्या सिन्हा भी सहज अभिनय कर लेती थीं.
आज दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं.
गीत के बोल:
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
के जैसे युगों से तुम्हे जानती हूँ
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
के जैसे युगों से तुम्हे जानती हूँ
अगर तुम हो सागर
अगर तुम हो सागर मैं प्यासी नदी हूँ
अगर तुम हो सावन मैं जलती कली हूँ
पिया तुम हो सागर
मुझे मेरी नींदें
मुझे मेरी नींदें मेरा चैन दे दो
मुझे मेरी सपनों की इक रैन दे दो ना
यही बात पहले
यही बात पहले भी तुमसे कही थी
वोही बात फिर आज दोहरा रही हूँ
पिया तुम हो सागर
तुम्हें छू के पल में बने धूल चन्दन
तुम्हें छू के पल में बने धूल चन्दन
तुम्हारी महक से महकने लगे तन
महकने लगे तन
मेरे पास आओ
मेरे पास आओ गले से लगाओ
पिया और तुमसे मैं क्या चाहती हूँ
मुरलिया समझ कर मुझे तुम उठा लो
बस इक बार होंठों से अपने लगा लो ना
कोई सुर तो जागे
कोई सुर तो जागे मेरी धड़कनों में
के मैं अपनी सरगम से रूठी हुई हूँ
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
के जैसे युगों से तुम्हे जानती हूँ
अगर तुम हो सागर मैं प्यासी नदी हूँ
अगर तुम हो सावन मैं जलती कली हूँ
पिया तुम हो सागर
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Tumhen dekhti hoon-Tumhare liye 1978
Artists: Sanjeev Kumar, Vidya Sinha
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