गुप्त गुप्त(शीर्षक)-गुप्त १९९७
का शीर्षक गीत है. इसको आप सरसरी तौर पर सुनेंगे तो आपको
गुप गुप सुनाई देगा.
एक बार की बात है मैं किसी दावत में गया था उस अवसर पर
गाने बजाये जा रहे थे जिनमें फिल्म मन और फिल्म गुप्त के
गाने ज्यादा थे. गुप्त फिल्म का गाना पूरी दावत में कम से कम
५ बार सुना दिया गया था. दावत के आखिरी बैच में हम सब
खाना खा रहे थे. कोई खड़े खड़े खा रहा था तो कोई टेबल कुर्सी
पर. एक सज्जन जो कुछ ऐसे अंदाज़ में खा रहे थे मानो २-३
दिन से कुछ ना मिला हो. उसके अलावा उनके खाने का अंदाज़
भकोसने वाला था. तल्लीनता उनकी ऐसी थी मानो आसपास कोई
ना हो, दुनिया से बेखबर. उसी के साथ बैकग्राउंड में गाना बज
रहा था गुप गुप. अब उन्हें देख के वे शब्द हमें गपा-गप जैसे
सुनाई दे रहे थे.
उस वाकये के बाद तो जब भी ये गीत कहीं बजता सुनाई देता है
वो हप-हप और गपा-गप तुरंत ही याद आता है.
गीत आनंद बक्षी ने लिखा जिसकी धुन बनाई है विजू शाह ने.
इसे हेमा सरदेसाई, कविता कृष्णमूर्ति और चेतन ने गाया है.
गीत के बोल:
गुप्त गुप्त
गुप्त ऐ रे
गुप्त गुप्त
गुप्त
गुप्त गुप्त
गुप्त ऐ रे
गुप्त गुप्त
वो क्या है
गुप्त गुप्त
गुप्त ऐ रे
गुप्त गुप्त
गुप्त
गुप्त गुप्त
गुप्त ऐ रे
गुप्त गुप्त
गुप्त
यहाँ वहाँ धुंआ धुंआ
छुपा कहाँ हाँ गुप्त है वो
गुप्त ऐ रे
गुप्त गुप्त
यहाँ वहाँ धुंआ धुंआ
छुपा कहाँ हाँ गुप्त है वो
गुप्त गुप्त
गुप्त
ये जान ले अगर पहचान ले नज़र
सभी बंधनों से तू हो जायेगा मुक्त
गुप्त गुप्त
वो क्या है
गुप्त गुप्त
गुप्त
गुप्त गुप्त
वो क्या है
गुप्त गुप्त
हे हे हे हे
यहाँ वहाँ धुंआ धुंआ
छुपा कहाँ हाँ गुप्त है वो
गुप्त ऐ रे
यहाँ वहाँ धुंआ धुंआ
छुपा कहाँ हाँ गुप्त है वो
ये जान ले अगर पहचान ले नज़र
सभी बंधनों से तू हो जायेगा मुक्त
गुप्त गुप्त
वो क्या है
गुप्त गुप्त
गुप्त
गुप्त गुप्त
वो क्या है
गुप्त गुप्त
हे हे हे हे
गुप्त गुप्त
गुप्त
गुप्त गुप्त
हे हे हे हे
अई यई यई यई या
अई यई यई यई या
गुप्त गुप्त
गुप्त
गुप्त गुप्त
वो क्या है
अई यई यई यई या
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Gupt gupt(Title)-Gupt 1997