ना जा कहीं अब ना जा-मेरे हमदम मेरे दोस्त १९६८
१९६८ की एक फिल्म से आपके लिए गीत। फिल्म मेरे हमदम मेरे दोस्त
ने औसत व्यवसाय किया था। इसके २-३ गीत बहुत चर्चित हुए थे। ये
गीत भी एक चर्चित गीत है जो धर्मेन्द्र पर फिल्माया गया । गीत लिखा
है मजरूह सुल्तानपुरी ने और इसकी तर्ज़ बनाई है लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने ।
शंकर जयकिशन प्रभाव स्पष्ट है इस गीत में। ऐसा प्रभाव कुछ रफ़ी के गाये
गीतों में ज्यादा मिलता है वो भी लक्ष्मी प्यारे की शुरू की कुछ फिल्मों में ही।
बाद में वे सारी छबियों और प्रभावों से मुक्त हो गए और उन्होंने अपनी अलग
ही पहचान बना ली । अजीब इत्तेफाक है कि पिछली बार की तरह ही इस बार भी
इस फिल्म के गीत की चर्चा के वक़्त मुझे अपने पुराने 'महान संगीत प्रेमी' मित्र
याद आ गए हैं। उनके मुताबिक इस फिल्म को और इसके गीतों को दर्शकों
और श्रोताओं ने पसंद नहीं किया था। ये उनकी अपनी राय हो सकती है और तमाम
झुमरी तलैया, मजनू का टीला और पहाड़गंज के संगीत प्रेमी इस राय से इत्तेफाक
नहीं रखते हैं। ये गीत तो पिछले ३० वर्षों के दौरान मैं ही कम से कम ७५ बार से
ज्यादा रेडियो पर सुन चुका हूँ जबकि इस गीत की एक भी फ़रमाइश मैंने आकाशवाणी
के किसी भी कार्यक्रम में नहीं भेजी। ।
गीत के बोल:
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
है यही दिल कूचा तेरा
ए मेरे हमदम मेरे दोस्त
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
है यही दिल कूचा तेरा
ए मेरे हमदम मेरे दोस्त
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
आ के खून-ए-दिल मिला के
भर दूं इन लबों के खाके
आ के खून-ए-दिल मिला के
भर दूं इन लबों के खाके
बुझा बुझा बदन तेरा
कमल कमल बने के
खिला दूं रंग-ए-हिना
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
आज शहर-ए-दिल में चाल कर
सूरत-ए-चिराग जल कर
आज शहर-ए-दिल में चाल कर
सूरत-ए-चिराग जल कर
किसी झुकी हुई नज़र
के काजल से दिल पे
लिखें आ नाम-ए-वफ़ा
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
है यही दिल कूचा तेरा
ए मेरे हमदम मेरे दोस्त
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
ना जा कहीं अब ना जा दिल के सिवा
दिल के सिवा
दिल के सिवा
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