रातों के साए-अन्नदाता १९७१
पेचीदा और जटिल धुनें बनाने के लिए विख्यात सलिल चौधरी ने
लता मंगेशकर के लिए विशेष संगीत तैयार किया जिसके फलस्वरूप
हमें कुछ अतिरिक्त मधुरता वाले गीत सुनने को मिले। टाइपरायटर
की खट खट और सिलाई मशीन की खटर-पटर के संगीत से शुरू होकर
लता की सन्नाटे को चीरती हुई आवाज़ तक पहुँचने का सफ़र बहुत सहज
तरीके से फिल्माया गया है। सोता हुआ बूढा आदमी उठ बैठता है ये देखने
को -रात में कोई तो है जिसकी आँखों में नींद नहीं है और जो सुरमई दर्द
हवा में उड़ेल रहा है। गरीब के घर में आशा की किरण भले ही पतली हो
मगर गहरी हुआ करती है। ओमप्रकाश एक बेहद संवेदनशील और
प्रतिभाशाली कलाकार थे और वे एक छोटे से दृश्य में भी अपनी छाप छोड़
दिया करते थे।
गीत के बोल:
रातों के साए घने जब बोझ दिल पर बने
ना तो जले बाती ना हो कोई साथी
ना तो जले बाती ना हो कोई साथी
फिर भी ना डर अगर बुझें दिए
सहर तो है तेरे लिए
रातों के साए घने जब बोझ दिल पर बने
ना तो जले बाती ना हो कोई साथी
ना तो जले बाती ना हो कोई साथी
फिर भी ना डर अगर बुझें दिए
सहर तो है तेरे लिए
जब भी मुझे कभी कोई जो गम घेरे
लगता है होंगे नहीं सपने ये पूरे मेरे
जब भी मुझे कभी कोई जो गम घेरे
लगता है होंगे नहीं सपने यह पूरे मेरे
कहता है दिल मुझको माना हैं गम तुझको
फिर भी ना डर अगर बुझें दिए
सहर तो है तेरे लिए
जब ना चमन खिले मेरा बहारों में
जब डूबने मैं लगूं रातों की मजधारों में
जब ना चमन खिले मेरा बहारों में
जब डूबने मैं लगूं रातों की मझधारों में
मायूस मन डोले पर ये गगन बोले
फिर भी ना डर अगर बुझें दिए
सहर तो है तेरे लिए
जब ज़िन्दगी किसी तरह बहलती नहीं
खामोशियों से भरी जब रात ढलती नहीं
जब ज़िन्दगी किसी तरह बहलती नहीं
खामोशियों से भरी जब रात ढलती नहीं
तब मुस्कुराऊँ मैं ये गीत गाऊँ मैं
फिर भी ना डर अगर बुझें दिए
सहर तो है तेरे लिए
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