ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल १ -माया १९६१
वायलिन और बांसुरी की आवाज़ को दर्द का पर्याय समझा जाता है।
एक गीत है फिल्म माया से जो वायलिन की आवाज़ से शुरू होता है
और शुरू में ही ये आभास दिलाता है की गाने में दुखी भावनाएं व्यक्त
की जाने वाली हैं। गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है और धुन बनाई
है सलिल चौधरी ने। गीत गाया है लता मंगेशकर ने।
.............
गाने के बोल:
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ना कोई दीपक है ना कोई तारा है
गुम है ज़मीं, दूर आसमाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ना कोई दीपक है ना कोई तारा है
गुम है ज़मीं, दूर आसमाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
किस लिये मिल मिल के दिल छूटते हैं
किस लिये बन बन महल टूटते हैं
किस लिये दिल टूटते हैं
किस लिये मिल मिल के दिल छूटते हैं
किस लिये बन बन महल टूटते हैं
किस लिये दिल टूटते हैं
पत्थर से पूछा, शीशे से पूछा
ख़ामोश है सबकी जुबां
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ना कोई दीपक है ना कोई तारा है
गुम है ज़मीं, दूर आसमाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
ना कोई दीपक है ना कोई तारा है
गुम है ज़मीं, दूर आसमाँ
ऐ दिल कहाँ तेरी मंज़िल
0 comments:
Post a Comment