तुम जो हमारे मीत ना होते-आशिक १९६२
लौट के बुद्धू घर को आये। ३-४ नयी फिल्मों के गीत सुन लेने के
बाद बाद फिर से काले-सफ़ेद वाले ज़माने के गीत सुनने का मन
करने लगता है। वो क्या है ३-४ टाइम नूडल्स और आलू-टिक्की
खाने के बाद पेट कुछ अजीब सा होने लगता है और पाचक चूर्ण
खाने की इच्छा होती है। पुराने गीत कुछ कुछ पाचक चूर्ण का काम
भी करते हैं।
ये गीत भी ऐसा ही है कुछ कुछ। इसको मैं सुनता हूँ जब मन में
बहुत उथल पुथल हो जाती है। मुकेश की दर्दीली-भारी आवाज़
मरहम का काम कर जाती है।
फिल्म आशिक(१९६२) में इस गीत को परदे पर गा रहे हैं
शो-मेन मन राज कपूर। शैलेन्द्र के लिखे गीत की तर्ज़
बनाई है शंकर जयकिशन ने। गीत छोटा सा है मगर इसका
असर लम्बी देर तक रहता है।
गीत के बोल:
तुम जो हमारे मीत ना होते
गीत ये मेरे गीत ना होते
हंस के जो तुम ये रंग ना भरते
ख्वाब ये मेरे ख्वाब ना होते
तुम जो ना सुनते
क्यूँ गाता मैं
तुम जो ना सुनते
क्यूँ गाता मैं
बेबस घुट के रह जाता मैं
तुम जो हमारे मीत ना होते
गीत ये मेरे गीत ना होते
तुम जो हमारे
जी करता है उड़ कर आऊँ
जी करता है उड़ कर आऊँ
सामने बैठूं और दोहराऊँ
तुम जो हमारे मीत ना होते
गीत ये मेरे गीत ना होते
हंस के जो तुम ये रंग ना भरते
ख्वाब ये मेरे ख्वाब ना होते
तुम जो हमारे
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Tum jo hamare meet na hote(Mukesh)-Aashiq 1962
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