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Jul 2, 2017

लो आई मिलन की रात-आशिक १९६२

मिलन और बिछुडन हिंदी फिल्मों और उनके गीतों के प्रमुख
अवयव हैं. आज आपको सुनवाते हैं एक गीत जिसके मुखड़े
में मिलन शब्द आया है. एक और चुम्बकीय शब्द है इसमें
रात.

हसरत जयपुरी के लिखे इस खूबसूरत गीत को पद्मिनी पर
फिल्माया गया है और इसे गा रही हैं लता मंगेशकर. गीत में
नंदा और राज कपूर भी दिखलाई देंगे आपको.



गीत के बोल:

नशीली रात है सारे चराग गुल कर दो
खुशी की रात में क्या काम है जलने वालों का

लो आई मिलन की रात सुहानी रात
लो आई मिलन की रात सुहानी रात
नैनों से किसी के नैन मिले
हाथों में किसी का हाथ
लो आई मिलन की रात सुहानी रात
लो आई मिलन की रात सुहानी रात

देने को मुबारकबाद तुम्हें
ये चांदनी दर पर आ ही गई
होंठों पे वफ़ा के गेट लिए
एक चंद्र किरण शर्मा ही गई
जीवन में कितने रंग भरे
ये मेहँदी वाले हाथ

लो आई मिलन की रात सुहानी रात
लो आई मिलन की रात सुहानी रात
नैनों से किसी के नैन मिले
हाथों में किसी का हाथ
लो आई मिलन की रात सुहानी रात
लो आई मिलन की रात सुहानी रात
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Lo aayi Milan ki raat-Aashiq 1961

Artists: Padmini, Nanda, Raj Kapoor

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Jan 19, 2017

महताब तेरा चेहरा-आशिक १९६२

शंकर जयकिशन के संगीत से सजी फिल्म आशिक का
हर एक गीत लाजवाब है. ऐसे मेरा अनुमान नहीं बल्कि
कई सारे संगीत प्रेमियों का है.

ये है लता और मुकेश की आवाजों में युगल गीत जिसे
शैलेन्द्र ने लिखा है. फिल्म में कुल ९ गीत हैं जिसमें
से ३ हसरत ने और ६ शैलेन्द्र ने लिखे हैं. युगल गीत
दो हैं जिन्हें लता और मुकेश ने गाया है. २ लता के
एकल गीत, ४ मुकेश के और १ गीत में मुकेश संग
कोरस की आवाजें हैं. शंकर जयकिशन के कोरस गीतों
का भी कोई मुकाबला नहीं है.



गीत के बोल:

महताब तेरा चेहरा किस ख़्वाब में देखा था
ऐ हुस्न जहाँ बतला तू कौन मैं कौन हूँ
ख़्वाबों में मिले अक़्सर इक राह चले मिलकर
फिर भी है यही बेहतर मत पूछ मैं कौन हूँ
महताब तेरा चेहरा

हुस्न-ओ-इश्क है तेरे जहाँ
दिल की धडकनें तेरी जुबां
आज जिंदगी तुझसे जवान
आगाज़ है क्या मेरा अंजाम है क्या मेरा
है मेरा मुकद्दर क्या बतला के मैं कौन हूँ
महताब तेरा चेहरा

क्यों घिरी घटा तू ही बता
क्यों हँसी फ़िज़ा तू ही बता
फूल क्यों खिला तू ही बता
इस राह पे चलना है इस ग़ाह पे रुकना है
इस काम को करना है बतला के मैं कौन हूँ
महताब तेरा चेहरा

ज़िंदगी को तू गीत बना
दिल के साज़ पे झूम के गा
इस जहाँ को तू प्यार सिखा

महताब तेरा चेहरा किस ख़्वाब में देखा था
ऐ हुस्न जहाँ बतला तू कौन मैं कौन हूँ
ख़्वाबों में मिले अक़्सर इक राह चले मिलकर
फिर भी है यही बेहतर मत पूछ मैं कौन हूँ
महताब तेरा चेहरा
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Mehtab tera chehra-Aashiq 1962

Artists: Padmini, Raj Kapoor

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Oct 19, 2011

मैं आशिक हूँ बहारों का-आशिक १९६२

बिलकुल राज कपूराना गीत है ये। कुछ गीत ख़ास राज कपूर के लिए रचे
गये थे उनमें से एक है फिल्म आशिक का ये शीर्षक गीत। इस फिल्म से पूर्व
में आप ४ गीत सुन चुके हैं इस ब्लॉग पर। किसी मोहतरमा के ख्याल में
आशिक होना आम बात है। इसमें कुदरत के नज़रों के साथ साथ कई और
पहलुओं के साथ आशिकी का जिक्र है जो गीत को अलग बनाता है।

इस तरह के गीत राज कपूर कि फिल्मों में कई हैं। इन सभी गीतों में वे इधर
उधार घुमते हुए बेफिक्र से गीत गेट दिखाई देते हैं। फिल्म आवारा के शीर्षक
गीत का ही उदाहरण ले लीजिये। ऐसे प्रेरणादायी गीत उनकी फिल्मों की
विशेषता होते थे। ऐसे गीतों को रचने के लिए गीतकार शैलेन्द्र का एक बार
फिर से तह-ए-दिल शुक्रिया।



गीत के बोल:

मैं आशिक हूँ बहारों का, नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

सदियों से जग में आता रहा मैं
नए रंग जीवन में गता रहा मैं
नए भेस में नित नए देश मैं

मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का,इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

कभी मैंने हंस के दीपक जलाए
कभी बन के बादल आंसू बहाए
मेरा रास्ता प्यार का रास्ता

मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

चला गर सफ़र को कोई बेसहारा
तो मैं हो लिया संग दिए एक तारा
गाता हुआ दुःख भूलता हुआ

मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का

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Main aashiq hoon baharon ka-Aashiq 1962

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May 27, 2011

ओ शमा मुझे फूँक दे-आशिक १९६२

फिल्म आशिक(१९६२) के ३ मधुर गीत आपको सुनवा चुके हैं-
लता का गाया एक गीत झनन झनझना के अपनी पायल,
मुकेश के गाये दो गीत - ये तो कहो कौन हो तुम, और
तुम जो हमारे मीत ना होते । हर एक गीत इस फिल्म का
नायाब है। आइये अब चौथा गीत सुना जाये जो कि एक
युगल गीत है मुकेश और लता की आवाज़ में। इसे लिखा
है शैलेन्द्र ने और अलबेले बैले नृत्य जैसे कुछ-कुछ मसाले
पर नाचने वाले कलाकारों के नाम अगर आपको मालूम हो
तो बतलाएं। गौरतलब है फिल्म की नायिका पद्मिनी आपको
नाचती दिखाई दे जाएँगी भीड़ के बीच में। खुशनुमा अंदाज़
से गीत दर्दीला गीत बन जाता है। पुराने ओर्केस्ट्रा कार्यक्रमों
में इस गीत को कई बार सुना है। गाने का ध्वनि संयोजन ही
ऐसा है कि ओर्केस्ट्रा वाले इसको अपने कार्यक्रमों में शामिल
करना पसंद करते।




गीत के बोल:

ओ शमा मुझे फूंक दे
मैं न मैं रहूँ, तू न तू रहे
यही इश्क़ का है दस्तूर
यही इश्क़ का है दस्तूर
परवाने जा है अजब चलन
यहाँ जीते जी अपना मिलन
क़िस्मत को नहीं मंजूर
क़िस्मत को नहीं मंजूर

शाम से लेकर रोज़ सहर तक
तेरे लिए मैं सारी रात जली
मैने तो हाय ये भी न जाना
कब दिन डूबा कब रात ढली
फिर भी हैं मिलने से मजबूर
फिर भी हैं मिलने से मजबूर

ओ शमा मुझे फूंक दे
मैं न मैं रहूँ, तू न तू रहे
यही इश्क़ का है दस्तूर
यही इश्क़ का है दस्तूर

पत्थर दिल हैं ये जगवाले
जाने न कोई मेरे दिल की जलन
पत्थर दिल हैं ये जगवाले
जाने न कोई मेरे दिल की जलन
जब से है जनमी प्यार की दुनिया
तुझको है मेरी मुझे तेरी लगन
तुम बिन ये दुनिया है बेनूर
तुम बिन ये दुनिया है बेनूर

परवाने जा है अजब चलन
यहाँ जीते जी अपना मिलन
क़िस्मत को नहीं मंजूर
क़िस्मत को नहीं मंजूर


हाय री क़िस्मत अंधी क़िस्मत
देख सकी ना तेरी-मेरी ख़ुशी
हाय री उल्फ़त बेबस उल्फ़त
रो के थकी जल-जल के मरी
दिल जो मिले किसका था क़सूर
दिल जो मिले किसका था क़सूर

ओ शमा मुझे फूंक दे
मैं न मैं रहूँ, तू न तू रहे
यही इश्क़ का है दस्तूर
यही इश्क़ का है दस्तूर
परवाने जा है अजब चलन
यहाँ जीते जी अपना मिलन
क़िस्मत को नहीं मंजूर
क़िस्मत को नहीं मंजूर
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O shama mujhe phoonk de-Aashiq 1962

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Nov 19, 2010

तुम जो हमारे मीत ना होते-आशिक १९६२

लौट के बुद्धू घर को आये। ३-४ नयी फिल्मों के गीत सुन लेने के
बाद बाद फिर से काले-सफ़ेद वाले ज़माने के गीत सुनने का मन
करने लगता है। वो क्या है ३-४ टाइम नूडल्स और आलू-टिक्की
खाने के बाद पेट कुछ अजीब सा होने लगता है और पाचक चूर्ण
खाने की इच्छा होती है। पुराने गीत कुछ कुछ पाचक चूर्ण का काम
भी करते हैं।

ये गीत भी ऐसा ही है कुछ कुछ। इसको मैं सुनता हूँ जब मन में
बहुत उथल पुथल हो जाती है। मुकेश की दर्दीली-भारी आवाज़
मरहम का काम कर जाती है।

फिल्म आशिक(१९६२) में इस गीत को परदे पर गा रहे हैं
शो-मेन मन राज कपूर। शैलेन्द्र के लिखे गीत की तर्ज़
बनाई है शंकर जयकिशन ने। गीत छोटा सा है मगर इसका
असर लम्बी देर तक रहता है।



गीत के बोल:

तुम जो हमारे मीत ना होते
गीत ये मेरे गीत ना होते

हंस के जो तुम ये रंग ना भरते
ख्वाब ये मेरे ख्वाब ना होते

तुम जो ना सुनते
क्यूँ गाता मैं
तुम जो ना सुनते
क्यूँ गाता मैं
बेबस घुट के रह जाता मैं

तुम जो हमारे मीत ना होते
गीत ये मेरे गीत ना होते
तुम जो हमारे

जी करता है उड़ कर आऊँ
जी करता है उड़ कर आऊँ
सामने बैठूं और दोहराऊँ

तुम जो हमारे मीत ना होते
गीत ये मेरे गीत ना होते

हंस के जो तुम ये रंग ना भरते
ख्वाब ये मेरे ख्वाब ना होते

तुम जो हमारे
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Tum jo hamare meet na hote(Mukesh)-Aashiq 1962

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Oct 28, 2009

ये तो कहो कौन हो तुम-आशिक १९६२

एक सुपर हिट गीत सुनें मुकेश की आवाज़ में। इस फ़िल्म
के सारे गाने हिट थे। वही है राज कपूर और पद्मिनी की
आशिक । इस गीत को शैलेन्द्र ने लिखा है और धुन है
शंकर जयकिशन की। सरल सी धुन है इस गीत की मगर
वाद्य यन्त्र इसकी जटिलता की कहानी कह देते हैं। शंकर
जयकिशन के गानों में वाद्य यन्त्र अपने चरम पर होते थे।
जब तक मुकेश की आवाज़ सुनाई देती है हमें ये आसानी से
गुनगुनाने लायक गाना लगता है, और, है भी एक तरह से।
ढोलक का ठेका लाजवाब है इस गाने में।



गाने के बोल:

किशन म्हारे हो जा

मुकेश: ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम
ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम
मुझसे पूछे बिना दिल में आने लगे
मुझसे पूछे बिना दिल में आने लगे

ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम
मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे
मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे

रात भी निराली, ये रुत भी निराली
रंग बरसाए, उमंग मतवाली
प्यार भरी आंखों ने जाल हैं बिछाए
कैसे करे कोई दिल की रखवाली
कैसे करे कोई दिल की रखवाली

ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम

हाँ,मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे
मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे

ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम

कोरस: किशन म्हारे हो जा.....

मस्तियों के मेले,ये खोई खोई रातें
आँखें करे आंखों से रंग भरी बातें
मुझसे क्या छुपेंगी ,ये लूटने की घातें
मुझसे क्या छुपेंगी ,ये लूटने की घातें

ये तो कहो,
ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम
मुझसे पूछे बिना दिल में आने लगे
मुझसे पूछे बिना दिल में आने लगे

तुम ही तो नहीं हो, तो सपनों में आके
छुप गए अपनी झलक दिखला के
तुम ही तो नहीं हो, मैं ढूँढा किया जिनको
फिर भी तुम न आए मैं थक गया बुला के
फिर भी तुम न आए मैं थक गया बुला के

ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम

कोरस : मुझसे पूछे बिना दिल में आने लगे
ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम
मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे
मीठी नज़रों से बिजली गिराने लगे

ये तो कहो, कौन हो तुम, कौन हो तुम
..................................
ye to kaho kaun ho tum-Aashiq 1962

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Oct 2, 2009

झनन झनझना के अपनी पायल-आशिक १९६२

संगीतकार शंकर जयकिशन के कैरियर का एक मील का पत्थर
है फ़िल्म आशिक। सुमधुर संगीत के ज़माने का एक गुलदस्ता।
सारे गाने सुपरहिट थे फ़िल्म के। हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित
इस फ़िल्म में राज कपूर और पद्मिनी की मुख्य भूमिकाएं हैं। इस
फ़िल्म में पद्मिनी थोडी दुबली पतली दिखाई देती हैं। जो गीत देखने
में आनंद देते हैं ये उनमे से एक है। नृत्य और मधुर संगीत का अनूठा
संगम। आनंद उठायें इसका। गीत शैलेन्द्र का लिखा हुआ है ।



गाने के बोल:

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

छम छम अपनी डगर चलूंगी
छम छम अपनी डगर चलूंगी
कोई भी रोके मैं न रुकूंगी

मैं सावन की चंचल नदिया
बंध के रही न बंध के रहूंगी

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

अपनी उमंगों में लहराऊँ
अपनी उमंगों में लहराऊँ
गीत किसी के गाती जाऊं

धरती को बाहों में भर लूँ
झूम के अम्बर पे छा जाऊं

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

राह में खो कर मैं अपने को
राह में खो कर मैं अपने को
खोज रही हूँ सुख सपने को

तरस गए हैं नैन हमारे
जिसको पलकों में रखने को

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ

झनन झनझना के अपनी पायल
चली मैं आज मत पूछो कहाँ
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Jhanan jhanjhana ke apni payal-Aashiq 1962

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